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अजवायन के औषधीय गुण सेवन विधि- Ajwain Medical Benefits Home Treatment in Hindi

हिंदी नाम : अजवायन
अंग्रेजी     :  Ajowan
संस्कृत    :  यवानी, अजमोदिका, दीप्यका
गुजराती  :  ઓરેગનિયો, अजमो
मराठी     :  ओरेगानो, ओवा
बंगाली    :  পার্সলে, जोवान
पंजाबी    :  ਓਰਗੈਨਨੋ, अन्वाइन, जवैण
तेलगु      :  పార్స్లీ, वामु
उर्दू          :  آیرانگو
अरबी      :  البقدونس

अजवायन का परिचय 

भारतवर्ष में अजवायन का प्रयोग औषधि के रूप में बहुत प्राचीन काल से हो रहा है। प्रसूति के बाद स्त्री को इसका विशेष रु से सेवन कराया जाता है। इससे अन्न का पाचन ठीक होता है, भूख अच्छी लगती है, गर्भाशय की शुद्धि एवं पीड़ा दूर होती है।  प्रसव के पश्चात इसके चूर्ण की पोटली बना योनि में रखने से या इसके क्वाथ से योनि का प्रक्षालन करने से गर्भाशय में दुर्गन्ध युक्त जलस्त्राव एवं गर्भाशय में कीटाणु प्रकोप नहीं हो पाता। पाचक औषधि के रूप में इस बूटी ने बहुत प्रसिद्धि पाई है। अजवायन में चिरायते का कटुपौष्टिक गुण, हींग का वायुनाशक और काली मिर्च का अग्नि दीपन गुण इसी कारण कहा जाता है “एका यवानी शतमननपातिका”- अर्थात अकेली अजवायन ही सैंकड़ो प्रकार के अन्न को पचाने में सक्षम है। दूध यदि ठीक न पचता हो तो दूध पीकर ऊपर से थोड़ी अजवायन खा लेनी चाहिये। यदि गेंहू का आटा मिष्ठान्न आदि न पचता हो तो इसमें इस वहन को मिलाकर खाना चाहिये। शरीर में कहीं पर भी वेदना होती हो तो इसे पानी आग पर दाल कर धूपित करने से, अंगदर्द दूर होकर पसीना आता है, एवं देह की शुद्धि हो जाती है।अजवायन के औषधीय गुण सेवन विधि- Ajwain Medical Benefits Home Treatment in Hindi

बाह्य – स्वरूप

इसका शाखा प्रशाखा युक्त, चिकना या किंचित मृदुरोमश पत्रमय क्षुप एक से तीन फिट ऊँचा होता है, काष्ठ धारीदार होता है, पत्र द्विपक्षवत विभक्त होता है। अंतिम पत्र खांड आधे से एक इंच लम्बे, रेखाकार होते है। पुष्प छत्राकार, श्वेत संयुक्त छात्रको में होते है।  फल आधे इंच लम्बे, अंडाकार, धूसर भूरे रंग के सूक्ष्म, कंटकित या रोमश होते है तथा पांच स्पष्ट रेखाओं से युक्त होने के कारण पच्च्कोणीय प्रतीत होते है फल के एक बीजी दोनों खांड कुछ दबे होते है। प्रत्येक खांड में एक बीज होता है। फरवरी-अप्रैल में पुष्प और उसके बाद इसमें फल लगते है।

अजवायन रासायनिक संघटन

इसके अंदर एक प्रकार का सुगन्धित उड़नशील द्रव्य होता है, जिसे अजवायन का फूल सत तथा अंग्रेजी में थायमोल कहते है। अजवायन को पानी में भिगोकर भाप के द्वारा इसका सत निकाला जाता है।

अजवायन गुण-धर्म

दीपन, पाचन, वातनुलोमन, शूलप्रशमन, जीवाणु नाशक, गर्भाशय उत्तेजक, उदर कृमिनाशक (अकुंष्मुख कृमि पर विशिष्ट घातक क्रिया), पित्त-वर्धक, शुक्रनाशक, स्तन्यनाशन, कफवात्तशामक, ज्वरध्न, शीतप्रशमन, वेदनास्थापन तथा शोथहर है।

अजवायन औषधीय प्रयोग

मलेरिया ज्वर में अजवायन के घरेलू उपचार एवं सेवन विधि 

मलेरिया ज्वर के बाद हल्का-हल्का बुखार रहने लगता है, इसके लिये 10 ग्राम अजवायन को रात में 100 ग्राम जल में भिगों दे और प्रातः पानी गुनगुन कर जरा सा नमक डालकर कुछ दिन सेवन करें।

बच्चों के पैरो पर कांटा चुभने के स्थान पर पिघले हुये गुड़ में पिसी हुई अजवायन 10 ग्राम मिलाकर थोड़ा गर्म कार बाँध देने से काँटा अपने आप निकल जायेगा।

खांसी में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

1. इसके चूर्ण की 2 से 3 ग्राम मात्रा को गर्म पानी या गर्म दूध के साथ दिन में दो या तीन वार लेने से भी जुकाम, सिर दर्द, नजला, मस्तकशूल, कृमि पर लाभ होता है।

2. कफ अधिक गिरता हो, बार-बार खांसी चलती हो, दशा में अजवायन का सत 125 मिलीग्राम, घी 2 ग्राम और शहद 5 ग्राम में मिलाकर दिन में 3 बार खाने से कफोत्पत्ति कम होकर खांसी में लाभ होता है।

3. खांसी तथा कफ ज्वर में अजवायन 2 ग्राम, चोरी पिप्पली आधा ग्राम, का क्वाथ बनाकर 5 से 10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से लाभ होता है।

4. खांसी में 1 ग्राम अजवायन रात्रि में सोते समय मुलेठी 2 ग्राम, चित्रकमूल 1 ग्राम से निर्मित काढ़े को गर्म पानी के साथ सेवन करें।

5. 5 ग्राम अजवायन को 250 ग्राम पानी में पकायें, आधा शेष रहने पर, छानकर नमक मिला रात्रि को सोते समय पी लें।

6. खांसी पुरानी हो गई हो, पीला दुर्गन्धमय कफ गिरता हो और पाचन क्रिया मंद पद गई हो तो अजवायन का अर्क दिन में 2 बार 25 की मात्रा में पिलाने से लाभ होता है।

सर्दी जुकाम में अजवायन के घरेलू उपचार एवं सेवन विधि 

सर्दी-जुकाम में 3-4 बून्द दिव्यधारा रुमाल में डालकर सूंघने से या 8-10 बूँद गर्म पानी में डालकर भाप लेने से तुरंत लाभ होता है।

उल्टी -दस्त में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

अमृत धरा की 4-5 बूँद बतासेन में या गर्म जल में डालकर आवश्यकतानुसार देने से तुरंत लाभ होता है। एक बार में लाभ न हो तो थोड़ी-थोड़ी देर में 2-3 बार दे सकते है।

दस्त में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

जब मूत्र बंद होकर पतले-पतले दस्त हो, तब अजवायन 3 ग्राम और नमक 500 मिलीग्राम ताजे पानी के साथ फंकी लेने से तुरंत लाभ होता है। अगर एक बार में आराम न हो तो 15-15 मिनट के अंतर् पर 2 -3 बार लेवें।

शराब की आदत में अजवायन के घरेलू उपचार एवं सेवन विधि 

1. शराबियों को जब शराब पीने की इच्छा हो तथा रहा ना जाये तब वो अजवायन 10-10 ग्राम की मात्रा में 2-3 बार चबायें।

2. आधा किलो अजवायन 400 ग्राम पानी में पकाकर जब आधा से भी कम शेष छानकर शीशी में भरकर फ्रिज में रखें, भोजन से पहले 1 कप काढ़े को शराबी को पिलायें, जो शराब छोड़ना चाहते हैं और छोड़ नहीं पाते, उनके लिए यह प्रयोग एक वरदान समान है। हमने हजारों शराबियों को इस प्रयोग से शराब मुक्त किया है।

मासिक धर्म की रुकावट में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

1. अजवायन 10 ग्राम और पुराना गुड़ 50 ग्राम को 200 ग्राम जल में पकाकर प्रातः-सांय सेवन करने से गर्भाशय का मल साफ़ होता है। और रुका हुआ मासिक धर्म फिर से जारी हो जाता है।

2. 3 ग्राम अजवायन चूर्ण को प्रातः-सांय गर्म दूध के साथ सेवन करने से मासिक धर्म की रुकावट दूर होकर, रजस्त्राव खुलकर होता है।

ज्वर में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

1. अजीर्ण की वजह से उत्पन्न हुये ज्वर में 10 ग्राम अजवायन, रात्रि को 125 ग्राम जल में भिगो दें, प्रातः काल मसल छानकर पिलाने से ज्वर आना बंद हो जाता है।

2. शीतज्वर में 2 ग्राम अजवायन सुबह-शाम खिलायें।

3. ज्वर की दशा में यदि पसीना अधिक निकले तब 100 से 200 ग्राम अजवायन को भूनकर और महीन पीसकर सर्व शरीर पर लगायें।

पुरुषत्व प्राप्ति में अजवायन के घरेलू उपचार एवं सेवन विधि 

3 ग्राम अजवायन को सफेद प्याज के रस 10 मिलीलीटर में 3 बार 10-10 ग्राम शक्कर मिलाकर सेवन करें। 21 दिन में पूर्ण लाभ होता है। इस प्रयोग से नपुंसकता, शीघ्रपतन व शुक्राण अल्पता के रोग में भी लाभ होता है।

प्रतिश्याय व शिरःशूल में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

1. 200 से 250 ग्राम अजवायन को गर्म कर मलमल के कपड़े में बांधकर पोटली बनाकर तवे पर गर्म करके सूँघने से छींके आकर जुकाम व प्रतिश्याय का वेग कम होता है।

2. अजवायन को साफ कर महीन चूर्ण बना लें, इस चूर्ण को 2 से 5 ग्राम की मात्रा में नसवार की तरह सूँघने से जुकाम, सिर की पीड़ा, कफ का नासिका में रुक जाना एवं मस्तिष्क के कृमि में लाभ होता है।

सिर की जुऐं में अजवायन के घरेलू उपचार एवं सेवन विधि 

10 ग्राम अजवायन चूर्ण में 5 ग्राम फिटकरी मिला, दही या छाछ में मिलकर बालों में मलने से लीखें तथा जुऐं मर जाती है।

 

 

कर्णशूल में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

10 ग्राम अजवायन को 50 ग्राम तिल के तेल में पकाकर सहने योग्य उष्ण तैल को 2-2 बून्द कान में डालने से कान की वेदना मिटती है।

उदरकृमि में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

1. स्वच्छ अजवायन के महीन चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार छाछ के साथ सेवन करने से उदर के कृमियों का समूल नाश हो जाता है।

2. अजवायन के 2 ग्राम चूर्ण को समान भाग नमक के साथ प्रातः काल सेवन से अजीर्ण, आमवात तथा कृमिजन्य रोग, आध्मान, शूल आदि शांत होता है।

3. उदर में जो हुकवर्म नामक कृमि होते है, उनका नाश करने के लिये अजवायन का सत 125-500 मिलीग्राम तक खाली पेट 1-1 घंटे के अंतर् में 3 बार देने से और मामूली जुलाब (अरंडी तैल नहीं दें) सब कृमि निकल जाते है। यह प्रयोग, पाडुरोगी, निर्बल, और सगर्भा पर नहीं करना चाहिये।

4. अजवायन के 500 मिलीग्राम चूर्ण में, समभाग काला नमक मिला, रात्रि के समय रोज गर्म जल से देते रहने से बाकलों का कृमि रोग दूर हो जाता है। कृमिरोग में पत्तों का 5 मिलीग्राम स्वरस भी लाभकारी है।

जलोदर में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

1 गाय के 1 किलो मूत्र में आह्वयन लगभग 200 ग्राम को भिगोकर सूखा लें, इसको थोड़ी -थोड़ी मात्रा में गोमूत्र के खाने से जलोदर मिटता है।

2. यही अजवायन जल के साथ खाने से पेट की गुड़गुड़ाहट और खट्टी डकारें आना बंद हो जाती है।

3. अजवायन को बारीक पीसकर उस में थोड़ी मात्रा में हींग मिलाकर लेप बनाकर पेट पर लगाने से जलोदर एवं पेट के अफारे में सध लाभ होता है।

अमृतधारा में अजवायन के घरेलू उपचार एवं सेवन विधि 

पोदीने का सत या फूल 10 ग्राम, सत अजवायन 10 ग्राम, देसी कपूर 10 ग्राम तीनों को एक साफ शीशी में डालकर अच्छी प्रकार से डाट लगाकर धुप में रखें।  थोड़ी देर में तीनों चीजों का गलकर पानी बन जायेगा। यह एक दवा अनेक बीमारियों में काम आती है। (इसको आंशिक रूप से परिवर्तित कर हम आश्रम में दिव्यधारा के नाम से निर्मित करते हैं)

हैजा में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

हैजे में 4-5 बूँद अमृतधार की विशेष रूप से गुणकारी है। अमृतधारा को हैजे की प्रारम्भिक अवस्था में देने से तुरंत लाभ होता है। एक बार में आराम न हो तो 15-15 मिनट के अंतर् से 2-3 बार दे सकते है। इसके प्रयोग से हैजे के सैकड़ो बीमार बच गये है।

अतिसार में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

मरोड़, पेट दर्द,श्वांस, गोला, उल्टी आदि बीमारियों में भी 5-7 बूँद अमृतधारा बतासे में देने से तुरंत लाभ होता है।

कीट दंश में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

बीच्छु, ततैया, भंवरी, मधुमक्खी इत्यादि जहरीले कीटों के दंश पर भी अमृतधारा को लगाने से शांति मिलती है। पत्तों को कुचल कर भी बाँध दिया जाता है।

उदर विकार मंदाग्नि, अम्लपित्त व शूल में अजवायन के घरेलू उपचार एवं सेवन विधि 

1. 3 ग्राम अजवायन में 1/2 ग्राम काला नमक मिलाकर गर्म जल के साथ फंकी लेने से अफरा मिटता है। इस चूर्ण को दोनों समय फंकी लेने से वायु गोले का नाश होता है।

2. अजवायन, सैंधा नमक, हरड़, और सौंठ इनके चूर्ण को समभाग मिश्रित कर, 1 से 2 ग्राम की मात्रा गर्म पानी के साथ सेवन करने से उदर शूल नष्ट होता है। इस चूर्ण के वचा, सोंठ, काली मिर्च, पिपल्ली 100 ग्राम जल में पकाकर चतुर्थाश शेष क्वाथ के साथ गर्म-गर्म ही रात्रि में पीने से कफ व गुल्म नष्ट होता है।

3. प्रसूता स्त्रियों को अजवायन के लड्डू और भोजन के बाद अजवायन 2 ग्राम की फंकी देनी चाहिये, इससे आँतों के कीड़े मरते हैं, पाचन होता है और भूख अच्छी लगती है एवं प्रसूत रोग से बचाव होता है।

4. भोजन के बाद यदि छाती में जलन हो तो 1 ग्राम अजवायन और बादाम की 1 गिरी दोनों की खूब चबा-चबा कर या कूट-पीसकर खायें।

5. अजवायन अर्क की 2-2 बूँद पान के बीड़े में लगाकर खायें।

6. अजवायन 1 भाग, काली मिर्च और सौंधा नमक आधा-आधा भाग, गर्म जल के साथ 3-4 ग्राम तक सुबह -शाम सेवन करें।

7. अजवायन 80 ग्राम, सैंधा नमक 40 ग्राम, काली मिर्च 40 ग्राम, काला नमक 40 ग्राम, जवाखार 40 ग्राम, कच्चे पपीते का दूध (पापेन) 10 ग्राम, इन सबको महीन पीस कर कांच के बर्तन में भरकर 1 किलो नीबू का रस डालकर धूप में रख देवें और बीच-बीच में हिलाते रहें।1 महीने बाद जब बिल्कुल सूख जाये, सूखे चूर्ण को 2 से 4 ग्राम की मात्रा में जल के साथ सेवन करने से मंदाग्नि शीघ्र दूर होती है। इससे पाचन शक्ति बढ़ती है तथा अजीर्ण, संग्रहणी, अल्मपति इत्यादि रोगों में लाभ होता है।

8. शिशु के पेट में यदि दर्द हो और सफर में हो तो बारीक स्वच्छ कपड़े के अंदर अजवायन को रख, शिशु की माँ यदि उसके मुँह में चटायें तो शिशु का उदर शूल तुरंत मिट जाता है।

शूल आनाह आदि उदर विकारों में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

अमाशय में रस के कम होने से या अधिक भोजन करने से जिनका पेट भोजन करने के बाद फूल जाता हो।

1. अजवायन 10 ग्राम छोटी हरड़ 6 ग्राम, हींग घी में भुनी और सेंधा नमक 3-3 ग्राम, इनका चूर्ण 2 ग्राम, किंचित गर्म जल के साथ दिन में तीन बार सेवन करें।

2. 1 किलोग्राम अजवायन में 1 किलोग्राम नीबू का रस तथा पांचो नमक 50-50 ग्राम, कांच के बर्तन में भरकर रख दें, व दिन में धुप में रख दिया करें, जब रस सूख जाये तब दिन में दो बार 1-4 ग्राम तक सेवन करने से उदर संबंधी सब विकार दूर होते है।

3. 1 ग्राम अजवायन को इन्द्रायण के फलों में भर कर रख छोड़े, जब सूख जाये तब बारीक पीस इच्छानुसार काला नमक मिलाकर रख लें, इसे गर्म जल से सेवन करें।

4. अजवायन चूर्ण 3 ग्राम प्रातः -सांय गर्म जल से लेवें।

5. डेढ़ किलोग्राम जल को आंच पर रखें, जब वह खूब उबल कर सवा किलोग्राम रह जाये तब नीचे उतार कर आधा किलोग्राम पिसी हुई अजवायन डालकर ढक्क्न बंद कर दे। जब ठंडा हो जाये तो छानकर बोतल में भर कर रख लें। 50-50 ग्राम दिन में 3 बार सेवन करें।

अर्श में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

दोपहर के भोजन के बाद एक गिलास छाछ में डेढ़ ग्राम (चौथाई चम्मच) पिसी हुई अजवायन और एक ग्राम सैंधा नमक मिलाकर पीने से बवासीर के मस्से पुनः नहीं होते।

बहुमूत्र में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

1. 2 ग्राम अजवायन को 2 ग्राम गुड़ के साथ कूट -पीस कर, 4 गोली बना लें, 3-3 घंटे के अंतर् से 1-1 गोली जल से लेवें, इससे बहुमूत्र रोग दूर होता है।

2. 4 ग्राम अजवायन कोर 4 ग्राम गुड़ की 500-500 मिलीग्राम तक की नौ गोली बना लें, 2-2 घंटे बाद खिलाने से अवश्य लाभ होता है।

3. जो बच्चे बिस्तर गीला कर देते हैं उन्हें रात्रि में 500 मिलीग्राम तक अजवायन खिलायें।

प्रमेह में अजवायन के घरेलू उपचार एवं सेवन विधि 

अजवायन 3 ग्राम को 10 ग्राम तिल  के साथ दिन में तीन  से लाभ होता है।

वृक्क शूल में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

3 ग्राम अजवायन का चूर्ण सुबह शाम गर्म दूध के साथ लेने से गुर्दे के दर्द में आशातीत लाभ होता है।

त्वग्रोगव्रण में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

1. चर्म रोग और व्रणों पर इसका गाढ़ा लेप करने से दाद, खुजली, कृमियुक्त व्रण एवं जले हुये स्थान में लाभ होता है।

2.अजवायन को उबलते हुये जल में डालकर व्रणों को धोने से दाद, फुंसी, गीली खुजली आदि चर्म रोगों में लाभ होता है।

सुजाक में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

अजवायन के तेल की 3 बूँद 5 ग्राम शक़्कर में मिलाकर प्रातः-सांय सेवन करते रहने से तथा नियमपूर्वक रहने से सुजाक में लाभ होता है।

मूत्रकृच्छ में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

1. 3 से 6 ग्राम अजवायन की फक्की उष्ण जल के साथ लेने से मूत्र की रुकावट मिटटी है।

2. 10 ग्राम अजवायन को पीसकर लेप बनाकर पेडू पर लगाने से अफारा मिटता है, शोथ कम होता है तथा खुलकर पेशाब होता है।

इंफ़्ल्युएन्जा में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

10 ग्राम अजवायन को 200 ग्राम गुनगुने पानी में पकाकर या फ़ॉन्ट तैयार का प्रत्येक 2.5 घंटे के बाद 25-25 ग्राम पिलाने से रोगी की बैचेनी शीघ्र दूर हो जाती है। 24 घंटे में ही तबियत अच्छी हो जाती है।

शूल आघातज शोथ में अजवायन के घरेलू उपचार एवं सेवन विधि 

किसी भी प्रकार की चोट पर 50 ग्राम गर्म अजवायन को दोहरे कपड़े की पोटली में डालकर सेंक करने से (1 घंटे तक) आराम आ जाता है। जरूरत हो तो जख्म पर कपड़ा दाल दें ताकि जले नहीं। किसी भी प्रकार की चोट पर अजवायन का सेंक रामबाण सिद्ध हुआ है।

पित्ती में अजवायन का प्रयोग एवं सेवन विधि 

50 ग्राम अजवायन को 50 ग्राम गुड़ के साथ अच्छी प्रकार कूटकर 6-6 ग्राम की गोली बना लें। 1-1 गोली प्रातः-सांय ताजे पानी के साथ लेने से एक सप्ताह में ही तमाम शरीर पर फैली हुई पित्ती दूर हो जायेगी।

विशेष 

1. अजवायन ताज़ी ही लेनी चाहिये क्योंकि पुरानी हो जाने पर इसका तैलीय अंश नष्ट हो जाने से यह वीर्यहीन हो जाती है। क्वाथ के स्थान पर अर्क या फांट का प्रयोग बेहतर है।

2. अजवायन का अधिक सेवन सिर में दर्द उत्पन्न करता है।

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