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वासा, अडूसा के औषधीय गुण एवं उपचार विधि – Vasa, Adusa, Basaka, Arush ki Dava Home Treatment

Medical Benefits of Vasa/Health Benifits of Vasaka/Adusa

वासा के पर्यायवाची नाम

हिंदी        :  वासा, वासक, अडूसा, विसौटा, अरुष
संस्कृत   :  वासक, आटरुषक, सिंहास्य, वसिका
अंग्रेजी    :  Malabar nut
पंजाबी    :  ਵਸਾ, वांसा
गुजराती :  વાસા, अडूसा, अल्डुसो
मराठी    :  वासा, आडुसोगे
बंगाली   :  vasa, बसाका, बासक
तेलगु     :  వ్యాసాలు, पैद्यामानु, अद्दासारामू
तमिल   :  கட்டுரைகள், एकधाड़ड्
अरबी    :  فاسا, हूफारीन, कून

वासा का परिचय

वासा, अडूसे के पौधे भारतवर्ष में 1,200 से 4,000 फूट की ऊचाई तक कंकरीली भूमि में स्वयं ही झाड़ियों के समूह में उगते हैं।

बाह्यस्वरूप

अडूसा का पौधा झाड़ीदार होता है। पत्ते 3-8 इंच लम्बे रोमश, अभिमुखी, दोनों और से नोकदार,पुष्प श्वेतवर्ण 2-3 इंच लम्बी मंजरियों में फरवरी-मार्च में आते है। फली 0.75 इंच लम्बी, रोमश, प्रत्येक फली में चार बीज होते है।

वासा रासायनिक संघटन  Chemical Composition of Vasa

अडूसा स्वर के लिए उत्तम, हृदय,कफ, पित्त, रक्तविकार, तृष्णा, श्वांस, खांसी, ज्वर, वमन,प्रमेह, कोढ़ तथा क्षय का नाश करने वाला है।   श्वसन संस्थान पर इसकी मुख्य क्रिया होती है। यह कफ को पतला कर बाहर निकालता है तथा श्वांस नलिकाओं का कम परतु स्थायी प्रसार करता है। श्वांस नलिकाओं के फ़ैल जाने से दमे के रोगी का सांस फूलना कम हो जाता है। कफ के साथ यदि रक्त भी आता हो तो वह भी बंद हो जाता है। इस प्रकार यह श्लेष्म, कास, कण्ठ्य एवं श्वांशहर है।  यह रक्तशोधक एवं रक्त स्तम्भक है, क्योंकि यह छोटी रक्त वाहिनियों को संकुचित करता है। यह प्राणदा नाड़ी को अवसादित कर रक्त भार को कुछ कम करता है। इसकी पत्तियों का लेप शोथहर,वेदनास्थापन, जन्तुघ्न तथा कुष्ठघ्न है। यह मूत्र जनन, स्वेदजनन तथा कुष्ठघ्न है। नवीन कफ रोगों की अपेक्षा इसका प्रयोग जीर्ण कफ रोगों में अधिक लाभकारी है।

गुणधर्म  

अडूसा वातकारक, स्वर के लिए उत्तम, हृदय, कफ, पित्त, रक्तविकार, तृष्णा, श्वांस, खांसी, ज्वर, वमन, प्रमेह, कोढ़ तथा क्षय का नाश करने वाला है। श्वसन संस्थान पर इसकी मुख्य क्रिया होती है। यह कफ को पतला कर बाहर निकालता है तथा श्वांस नलिकाओं का कम परतु स्थायी प्रसार करता है। श्वांस नलिकाओं के फ़ैल जाने से दमे के रोगी का साँस फूलना कम हो जाता है। कफ के साथ यदि रक्त भी आता हो तो वह भी बंद हो जाता है। इस प्रकार यह श्लेष्म, कास, कण्ठ्य एवं श्वांसहर है। यह रक्तशोधक एवं रक्त स्तम्भक है। क्योंकि यह छोटी रक्त वाहिनियों को संकुचित करता है। यह प्राणदा नाड़ी को अवसादित कर रक्त भर को कुछ कम करता है। इसकी पत्तियों का लेप शोथहर, वेदनास्थापन,जन्तुघ्न तथा कुष्ठघ्न है। यह मूत्र जनन, स्वेदजनन तथा कुष्ठघ्न है। नवीन कफ रोगों की अपेक्षा इसका प्रयोग जीर्ण कफ रोगों में अधिक लाभकारी है। Kala Vasa ki Davayen, Kala vasa ke aushadhiy gun.

औषधीय प्रयोग गुण एवं उपचार विधि

सिर दर्द में वासा की सेवन विधि 

अडूसा के फूलों को छाया में सुखाकर महीन पीसकर 10 ग्राम चूर्ण में थोड़ा गुड़ मिलाकर चार खुराक बना लें। सिरदर्द का दौरा शुरू होते ही 1 गोली खिला दें, तत्काल लाभ होता है।

खांसी में वासा की सेवन विधि 

1. वासा के ताजे पत्रों का स्वरस, शहद के साथ (साढ़े सात ग्राम की मात्रा में) चाट लेने से पुरानी खांसी, श्वांस और क्षय रोग में बहुत फायदा होता है।

कफ-ज्वर में वासा की सेवन विधि 

1. हरड़, बहेड़ा, आँवला, पटोल पत्र, वासा, गिलोय, कटुकी, पीपली मूल सब मिलकर 20 ग्राम मधु का प्रक्षेप देकर सेवन करने से कफ ज्वर में लाभ होता है।

2. त्रिफला, गिलोय, कटुकी, चिरायता, नीम की छाल तथा वासा 20 ग्राम लेकर 320 ग्राम जल में पकायें, जब चतुर्थाश शेष रह जाये तो इस क्वाथ में मधु मिलाकर 20 मिलीग्राम सुबह-शाम सेवन कराने से कामला तथा पाण्डु रोग नष्ट होता है।

मासिक धर्म में वासा की सेवन विधि 

इसके पत्ते ऋतुस्त्राव को निंयत्रित करते है। रजोरोध में वासा पत्र 10 ग्राम, मूली व गाजर के बीज प्रत्येक 6 ग्राम, तीनों को आधा किलो पानी में पका लें। चतुर्थाश शेष रहने पर यह क्वाथ कुछ दिन सेवन करने से लाभ होता है।

2. अडूसा, मुनक्का और मिश्री का 10-20 ग्राम क्वाथ दिन में तीन -चार बार पिलाने से सूखी खांसी मिटती है।

दाद खुजली में वासा की सेवन विधि 

अडूसे के 10-12 कोमल पत्र तथा 2-5 ग्राम हल्दी को एक साथ गोमूत्र से पीस कर लेप करने से खुजली व शोथ कण्डु रोग शीघ्र नष्ट होता है। इससे दाद उकवत में भी लाभ होता है।

क्षय रोग में वासा की सेवन विधि 

अडूसे के पत्तों के 20-30 ग्राम क्वाथ में छोटी पीपल का 1 ग्राम चूर्ण बुरक कर पिलाने से जीर्ण कास, श्वांस और क्षय रोग में फायदा होता है।

शिरो रोग में वासा की सेवन विधि 

1. वासा की जड़ को 2 ग्राम,  200 ग्राम दूध में अच्छी प्रकार पीस-छानकर इसमें 30 ग्राम मिश्री 15 नग काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से शिरो रोग, नेत्र रोग, शूल, हिचकी, खांसी आदि विकार नष्ट होते है।

2. छाया में सूखे हुए वासा पत्रों की चाय बना कर पीने से सिर दर्द या शिरोरोग संबंधी कोई भी बाधा दूर हो जाती है। स्वाद के लिए इस चाय में थोड़ा नमक मिला सकते है।

नेत्र रोग में वासा की सेवन विधि 

इसके 2-4 ताजे पुष्पों को गर्म कर आँख पर बाँधने से आँख के गोलक की पित्तशोथ (सूजन) दूर होती है।

ज्वर में वासा की सेवन विधि 

पैत्तिक ज्वर में वासा पत्र और आंवला बराबर लेकर जौ कूटकर सांयकाल के समय मिटटी के बर्तन में (कुल्हड़) भिगो दें। प्रातः-काल घोंटकर स्वरस निचोड़ लें। इसमें 10 ग्राम मिश्री मिलकर पिलाने से ज्वर शांत होता है।

मुखपाक में वासा की सेवन विधि 

1. यदि केवल मुख में छाले हो तो इसके 2-3 पत्तों को चबाकर उसके रस को चूसने से लाभ होता है। फोक थूक देना चाहिए।

2. इसकी लकड़ी की दातौन करने से मुख के रोग दूर हो जाते हैं।

3. वासा के 50 मिलीग्राम क्वाथ में एक चम्मच गेरू और दो चम्मच मधु मिलाकर मुख में धारण करने से मुखपाक, नाड़ीव्रण नष्ट होते हैं।

दन्त सौषिर्य में वासा की सेवन विधि 

दाढ़ या दांत में कैविटी हो जाने पर उस स्थान में इसका सत्व भर देने से आराम होता है।

दन्त पीड़ा में वासा की सेवन विधि 

वासा के पत्तों के क्वाथ से कुल्ला करने से मसूड़ों की पीड़ा मिटती है।

चेचक निवारण में वासा की सेवन विधि 

यदि चेचक फैली गई हो तो वासा का 1 पत्ता तथा मुलेठी 3 ग्राम इन दोनों का क्वाथ बच्चों को पिलाने से चेचक का भय नहीं रहता है।

अपस्मार में वासा की सेवन विधि 

प्रतिदिन जो रोगी दूध भात का पथ्य रखता हुआ 2-5 ग्राम वासा चूर्ण का 1 चम्मच मधु के साथ सेवन करता है, वह पुराने भंयकर अपस्मार रोग से मुक्त हो जाता है।

श्वांस रोग में वासा की सेवन विधि 

1. अडूसा, हल्दी, धनिया, गिलोय, पीपल, सौंठ तथा रींगणी के 10-20 ग्राम क्वाथ में 1 ग्राम मिर्च का चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार पीने से सम्पूर्ण श्वांस रोग पूर्ण रूप से नष्ट हो जाते है।

2. इसके छोटे पेड़ के पंचाग को छाया में सुखाकर कपड़े में छानकर नित्य 10 ग्राम मात्रा की फंकी देने से श्वांस और कफ मिटता है।

दमा में वासा की सेवन विधि 

इसके ताजे पत्तों को सुखाकर उनमे थोड़े से काले धतूरे को सूखे हुए पत्ते मिलाकर दोनों का चूर्ण (बीड़ी बनाकर पीने) धूम्रपान से जीर्णश्वांस में आश्यर्चजनक लाभ होता है।

फुफ्फस प्रदाह में वासा की सेवन विधि 

अडूसे के 8-10 पत्तों को रोगन बाबूना में घोंटकर लेप करने से फुफ्फुस प्रदाह में शांति होती है।

परमपूज्य स्वामी रामदेव जी का स्वानुभूत प्रयोग :- वासा के पत्तों का रस 1 चम्मच, 1 चम्मच अदरक का रस, 1 चम्मच शहद मिलाकर पीने से सभी प्रकार की खांसी से आराम हो जाता है।

आध्मान में वासा की सेवन विधि 

वासा छाल का चूर्ण 1 भाग, अजवायन का चूर्ण चौथाई और इसमें आठवा हिस्सा सेंधा नमक मिलाकर नींबू के रस में खूब खरल कर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर भोजन के पश्चात 1-3 गोली सुबह -शाम सेवन करने से वातजन्य ज्वर आध्मान विशेषतः भोजन करने के बाद पेट भारी हो जाना, मंद-मंद पीड़ा होना दूर होता है। वासा क्षार भी प्रयुक्त किया जा सकता है।

वृक्क्शूल में वासा की सेवन विधि 

अडूसे और निम् के पत्तों को गर्म कर नाभि के निचले भाग पर सेंक कटने से तथा अडूसे के पत्तों के 5 ग्राम रस में उतना ही शहद मिलाकर पिलाने से गुर्दे के भंयकर दर्द में आश्चर्यजनक रूप से लाभ पहुँचता है।

अतिसार में वासा की सेवन विधि 

इसका पत्र स्वरस 10-20 ग्राम की मात्रा को दिन में तीन-चार बार पीना रक्तातिसार में बहुत लाभकारी है।

मूत्र दोष में वासा की सेवन विधि 

खरबूजे के 10 ग्राम बीज तथा अदूऐ के पत्ते बराबर लेकर पीसकर पीने से पेशाब खुलकर आने लगता है।

मूत्रदाह में वासा की सेवन विधि 

वासा पुष्प राजयक्ष्मा का नाश करने वाला, पित्तघ्न और रुधिर की गर्मी को घटाता है। यदि 8-10 फूलों को रात्रि के समय एक गिलास जल में भिगो दिया जाये और प्रातः मसलकर छानकर पान करें तो मूत्र की जलन और सुर्खी दूर हो जाती है।

शुक्रमेह में वासा की सेवन विधि 

इसके शुष्क पुष्पों को कूट छानकर उसमें दुगुनी मात्रा में बंगभस्म मिलाकर, शीरा और खीरा के साथ सेवन करने से शुक्र प्रमेह नष्ट होता है।

जलोदर में वासा की सेवन विधि 

जलोदर में या उस समय जब सारा शरीर श्वेत हो जाये उसमें इसके पत्तों का 10-20 ग्राम स्वरस दिन में 2-3 बार पिलाने से मूत्रवृद्धि हो के यह रोग मिटता है।

सुख प्रसव में वासा की सेवन विधि 

अडूसे की जड़ को पीसकर गर्भवती स्त्री की नाभि, नलों व योनि पर लेप करने से तथा मूल को कमर से बाँधने से बालक सुख से पैदा हो जाता है।

प्रदर में वासा की सेवन विधि 

1. पित्त प्रदर में अडूसे के 10-15 मिलीग्राम स्वरस में अथवा गिलोय के रस में 5 ग्राम खांड तथा 1 चम्मच मधु मिलाकर दिन में दो बार सेवन करना चाहिए।

2. अडूसा के 10 ग्राम पत्तों के स्वरस में 1 चम्मच मधु मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से श्वेत प्रदर मिटता है।

रक्त प्रदर में वासा की सेवन विधि 

रक्त प्रदर में वासा के 10 ग्राम पत्र स्वरस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर दिन में तीन बार देने से एक सप्ताह में पूर्ण आराम हो जाता है।

सुख प्रसव में वासा की सेवन विधि 

पाठा, कलिहार, अडूसा, अपामार्ग, इनमे किसी एक बूंटी की जड़ को नाभि, बस्तिप्रदेश तथा भग प्रदेश पर लेप देने से प्रसव सुखपूर्वक होता है।

कामला में वासा की सेवन विधि 

इसके पंचाग के 10 मिलीग्राम स्वरस में मधु और मिश्री समभाग मिलाकर पिलाने से कमला रोग नष्ट हो जाता हो जाता है।

बाइटें में वासा की सेवन विधि 

10 ग्राम वासा पुष्पों को 2 ग्राम सोंठ के साथ 100 ग्राम जल में पकाकर पिलाने से बाइटों में आराम मिलता है।

फोड़ा में वासा की सेवन विधि 

फोड़े पर प्रारम्भ में ही पत्तों को पानी के साथ पीसकर लेप कर दें तो फोड़ा बैठ जाता है और कोई कष्ट नहीं होता है।

ऐंठन में वासा की सेवन विधि 

इसके पत्र स्वरस में सिद्ध किये तिल के तैल की मालिश से आक्षेप, उदरस्थ वात तथा हाथ पैरों की ऐंठन मिट जाती है।

वातरोग में वासा की सेवन विधि 

वासा के पके हुए पत्तों को गर्म करके सिकाई करने से सन्धिवात लकवा और वेदनायुक्त उत्सेध में आराम पहुंचता है।

अर्श में वासा की सेवन विधि 

अडूसे के पत्ते और श्वेत चंदन इनको बराबर मात्रा में लेकर महीन चूर्ण बना लेना चाहिए।  इस चूर्ण की 4 ग्राम मात्रा प्रतिदिन, दिन में दो बार सुबह-शाम सेवन करने से रक्तार्श में बहुत लाभ होता है और खून का बहना बंद हो जाता है। अशाकुंरो में यदि सूजन हो तो इसके पत्तों के क्वाथ का बफारा देना चाहिए।

रक्त पित्त में वासा की सेवन विधि 

1. ताजे हरे अडूसे के पत्तो का रस मिकालकर 10-20 ग्राम रस में मधु तथा खांड मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से भयंकर रक्तपित्त शांत हो जाता है। यह रक्तपित्त के लिए स्तम्भन योग्य है। उर्ध्व रक्तपित्त में इसका प्रयोग होता है।

2. अडूसा का 10-20 ग्राम स्वरस, तालीस पत्र का 2 ग्राम चूर्ण तथा मधु मिलकर सुबह-शाम पीने से कफ विकार, पित्त विकार, तमक, श्वास, स्वरभेद तथा रक्तपित्त का नाश होता है।

3. वासमूल त्वक, मुनक्का, हरड़ इन तीनो को समभाग मिलाकर 20 ग्राम की मात्रा लेकर 400 ग्राम पानी में पकायें। चतुर्थाश शेष रहने पर क्वाथ में खांड तथा मधु डाल कर पीने से कास, श्वास तथा रक्तपित्त रोग शांत होते है।

आन्त्र-ज्वर में वासा की सेवन विधि 

3-6 ग्राम वासा चूर्ण की फंकी देने से आंत्र-ज्वर ठीक हो जाता है।

सन्निपात  Sanpat में वासा की सेवन विधि 

1. सन्निपात ज्वर में पुटपाक विधि से निकाला अडूसा 10 ग्राम स्वरस तथा थोड़ा अदरक का रस और तुलसी पत्र मिला उसमें मुलहठी को घिसकर शहद में मिलाकर सुबह दोपहर तथा शाम पिलाना चाहिए।

2. सन्निपात ज्वर में इसकी मूल की छाल 20 ग्राम, सौंठ 3 ग्राम, काली मिर्च एक ग्राम इनका क्वाथ बनाकर, मधु मिलाकर पिलाना चाहिए।

आमदोष में वासा की सेवन विधि 

मोथा, वच, कटुकी, हरड़, दूर्वामूल इन्हें समभाग मिश्रित कर 5-6 ग्राम की मात्रा लेकर 10-20 मिलीग्राम गोमूत्र के साथ शूल में आमदोष के परिपाक के लिए पिलाना चाहिए।

शरीर की दुर्गन्ध में वासा की सेवन विधि 

इसके पत्र स्वरस में थोड़ा शंखचूर्ण मिलाकर लगाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।

जन्तुघ्न में वासा की सेवन विधि 

अडूसा जलीय कीड़ो तथा जंतुओं के लिए विषैला है, मेढ़क इत्यादि छोटे जंतु इससे मर जाते हैं। इसलिए पानी को शुद्ध करने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है।

पशु व्याधि में वासा की सेवन विधि 

गाय तथा बैलों को यदि कोई उदर व्याधि हो तो उनके चारे में इसके पत्तों की कुटी मिला देने से लाभ होता है। बैलों के उदरकृमि नष्ट हो जाते है।

सूखे पान में वासा की सेवन विधि 

वासा के सूखे पत्ते पुस्तकों में रखने से उनमे कीड़े नहीं लगते है।  वासा, वासक, अडूसा, विसौटा, अरुष

अडूसा के साइडइफेक्ट (दुष्प्रभाव)

अगर काला वासा का प्रयोग इसके प्राकृतिक रूप में किया जाये तो इसका कोई साइडइफेक्ट नहीं होता है। काला वासा के पत्तों का चूर्ण, पत्तों का जूस या काढ़े का प्रयोग करने से कोई हानि नहीं होती है।

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