अपामार्ग, लटजीरा, मयूरक के औषधीय गुण – Apamarg, Latjira, Mayurak ke Aushadhiya Gur
वैज्ञानिक नाम
Acbyrantbes aspera L.
कुलनाम
Amaranthaceae
अंग्रेजी नाम
Prickly chaff flower.
संस्कृत
किणीही, मयूरक, खरमंजरी,अधःशल्य, मर्कटी, दुर्गाः, शिखरी, अपामार्ग
हिंदी
चिरचिटा, चिचड़ा, औंगा चिचरी, लटजीरा, लहचिचिरी
गुजराती
અસમાન
बंगाली
Apang
मराठी
न वाचण्यायोग्य
अरबी
تشيشارا ألكوم
तेलगु
Duchchinike
फ़ारसी Kharevajagoon
अपामार्ग का पौधा
अपामार्ग (लटजीरा) का परिचय:-
अपामार्ग अर्थात जो दोषों को संशोधन करे, बढ़ी हुई भूख को शांत करे, दन्त रोगों को हरे और अन्य बहुत से असाध्य रोगों का नाश करे, ऐसा दिव्य पौधा भारतवर्ष के प्रायः सभी प्रांतों में जंगली अवस्था में शहरों में, गाँवों में सर्वत्र पाया जाता है। वर्षा ऋतु में यह विशेषकर पाया जाता है, परन्तु कहीं-कहीं पर यह वर्ष पर्यन्त भी मिलता है। वर्षा की पहली फुहारें पड़ते ही यह अंकुरित होने लगता है। शीत ऋतु में फलता फूलता है। तथा ग्रीष्म ऋतु में परिपक्व होकर फलों के साथ पौधा भी सूख जाता है। इसके पुष्प हरी गुलाबी कलियों से युक्त तथा बीज चावल सदृश होते है।
बाह्य-स्वरूप
अपामार्ग का पौधा 1से 3 फुट ऊंचा होता है। शाखायें पतली, अशक्त कांड वाली और पर्व संधि कुछ फूली और मोटी होती है।कांड प्रायः दो शाखाओं में विभक्त होता है। पत्र सम्मुख अंडाकार या अभिलटवाकार, लम्बाग्र 1-5 इंच लम्बे, रोमश तथा सवृत्त होते हैं। पुष्पमंजरी पत्रों के बीच से निकलती है। यह लगभग 1 फिट कभी -कभी 3 फिट तक लम्बी होती है। पुष्प-स्पाइक क्रम में अधो मुखी 1/6 व 1/4 इंच तक लम्बे होते हैं। कंटकीय वृत्त पत्रकों तथा परिपुष्प के कारण फल कपड़ो में चिपक जाते हैं, या हाथ में जाते हैं। अपामार्ग का पौधा दो प्रकार का होता है। सफेद व लाल/ लाल अपामार्ग का कांड और शाखाएं रक्ताभ होती है। पत्रों पर भी लाल दाग होते है।
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रासायनिक संघठन
अपामार्ग की राख में पौटेशियम की मात्रा बहुत अधिक होती है।
गुण-धर्म
यह कफ वातशामक तथा कफ पित्त संशोधक है। यह शोथ हर, वेदना स्थापन, लेखन, विषध्न, त्वक्दोषहर और व्रण शोधक तथा शिरोविरेचन है। यह रेचनं दीपन, पाचन, पित्तसारक, कृमिघ्न, हृदय, रक्त शोधक, रक्तवर्धक, शोथहर, मूत्रल, अश्मरीहर, मूत्रलतानाशक, स्वेद जनन, कुष्ठघ्न और कण्डूध्न है।
अपामार्ग विशेष रूप से कृमिघ्न है। त्वचा रोगों में सर्प बिच्छू ततैया भंवरी आदि के दंश पर इसके पत्र स्वरस का लेप बहुत गुणकारी होता है। अपामार्ग, वातविकार, अश्मरी, शर्करा मूत्रकृच्छ्रा की पीड़ा को शांत करता है।
अपामार्ग, भार्गी, अपराजिता ये सब कफ मेद एवं विष के नाशक है। कृमि-कुष्ठ को शांत करने वाले, खासकर व्रण के शोधक हैं।
औषधीय प्रयोग
आधा सीसी :- इसके बीजों के चूर्ण को सूँघने मात्र से आधा सीसी, मस्तक की जड़ता में आराम मिलता है। इस चूर्ण को सुंघाने से मस्तक इ अंदर जमा हुआ कफ पतला होकर नाक के जरिये निकल जाता है, और वहां पर पैदा हुये कीड़े भी झड़ जाते है।
दंतशूल :- 1. 2-3 पत्रों का स्वरस में रुई का फोया बनाकर दांतों में लगाने से दांतों के दर्द में लाभ पहुँचता है तथा पुरानी से पुरानी गुहा को भरने में मदद करता है।
- इसकी ताज़ी जड़ से प्रतिदिन दातून करने से दांत मोती की तरह चमकने लगते है। दंतशूल दांतों का हिलना मसूड़ों की कमजोरी तथा मुँह की दुर्गंध को दूर करता है।
कर्णबाधिर्य :- अपामार्ग की साफ धोई हुई जड़ का रस निकल उसमे बराबर मात्रा में तिल का तेल मिलाकर आग में पका लें। जब तेल मात्र शेष रह जाये तब छानकर शीशी में रख लें। इस तेल की 2-3 बूँद गर्म करके हर रोज कान में डालने से कान का बहरापन व कर्णपूय दूर होता है।
नेत्र रोग :- 1. आँख की फूली में अपामार्ग के मूल के 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच मधु के साथ मिलाकर 2-2 बूँद आँख में डालने से लाभ होता है।
- नेत्राभिष्यन्द नेत्रशोथ, कण्डू, स्त्राव, नेत्रों की लालिमा फूली रतौंधी आदि विकारो में इसकी स्वच्छ मूल को साफ तांबे के बर्तन में थोड़ा सा सैंधा नमक मिले हुये दही के पानी के साथ घिसकर अंजन रूप में लगाने से लाभ होता है।
श्वास, कास :- 1. अपामार्ग की जड़ में बलगमी खांसी और दमें को नाश करने का चमत्कारिक गुण है। इसके 8-10 सूखे पत्तों को हुक्के में रखकर पीने से श्वास में लाभ होता है।
- अपामार्ग क्षार 1/2 ग्राम लगभग की मात्रा में मधु मिलाकर प्रातः-सांय चटाने से बच्चों की श्वास नली तथा वक्षः स्थल में संचित कफ दूर होकर बाल कास दूर होता है।
- खांसी बार-बार परेशान करती हो, कफ निकलने में कष्ट हो, कफ गाढ़ा व लेसदार हो गया हो, इस अवस्था में या न्यूमोनिया की अवस्था में 1/2 ग्राम अपामार्ग क्षार व 1/2 ग्राम शर्करा दोनों को 30 ग्राम ग्राम जल में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से 7 दिन में बहुत लाभ होता है।
- श्वास रोग की तीव्रता में इसकी मूल का चूर्ण 6 ग्राम व 7 काली मिर्च का चूर्ण दोनों को सुबह -शाम ताजे जल के साथ लेने से बहुत लाभ होता है।
विसूचिका :- अपामार्ग के मूल के चूर्ण को 2 से 3 ग्राम तक दिन में 2-3 बार शीतल जल के साथ सेवन करने से तुरंत ही विसूचिका नष्ट होती है। अपामार्ग के 4-5 पत्तों का रस निकालकर थोड़ा जल व मिश्री मिलाकर देने से विसूचिका में अच्छा लाभ होता है।
अर्श :- 1. इसके बीजों को पीसकर उनका चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में सवेरे-शाम चावलों के धोवन के साथ देने से खूनी बवासीर में खून पड़ना बंद हो जाता है।
- अपामार्ग की 6 पत्तियां काली मिर्च 5 नग को जल के साथ पीस छानकर प्रातः-सांय सेवन करने से अर्श में लाभ हो जाता है और उसमें बहने वाल रक्त रुक जाता है।
- पित्तज या कफ युक्त रक्तार्श पर इसकी 10-20 ग्राम जड़ को चावल के धोवन के साथ पीस-छानकर दो चम्मच शहद मिलाकर पिलाना गुणकारी है।
उदर विकार :- 1. अपामार्ग पंचाग को 20 ग्राम लेकर 400 ग्राम पानी में पकायें जब चतुर्थाश शेष रहे तब उसमें 500 मिलीग्राम नौसादर चूर्ण तथा 1 ग्राम काली मिर्च चूर्ण मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से उदर शूल दूर हो जाता है।
- पंचाग का क्वाथ 50-60 ग्राम भोजन के पूर्व सेवन से पाचन रस में वृद्धि होकर शूल कम होता है। भोजन के दो से तीन घंटे पश्चात पंचाग का गर्म -गर्म 50-60 ग्राम क्वाथ पीने से अम्लता कम होती है तथा श्लेष्मा का शमन होता ही। यकृत पर अच्छा प्रभाव होकर पित्तस्राव उचित मात्रा में होता है, जिस कारण पित्ताश्मरी तथा अर्श में लाभ होता है।
भस्मक रोग :- 1. भस्मक रोग जिसमें बहुत भूख लगती है और खाया हुआ अन्न भस्म हो जाता है परन्तु शरीर कृश ही बना रहता है, उसमें अपामार्ग के बीजों का चूर्ण 3 ग्राम दिन में दो बार लगभग ऐ सप्ताह तक सेवन करने से निश्चित रूप से भस्मक रोग मिट जाता है।
- इसके 5-10 ग्राम बीजों को पीस कर खीर बनाकर खिला देने से भस्मक रोग मिट हटा है। यह प्रयोग अधिक से अधिक 3 बार करने से रोग ठीक होता है। इसके 5-10 ग्राम बीजों को खाने से अधिक भूख लगना बंद हो जाती है।
- अपामार्ग के बीजों को कूट छानकर, महीन चूर्ण करें तथा बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर 3-6 ग्राम तक सुबह-शाम जल के साथ प्रयोग करें। इससे भी भस्मक रोग ठीक हो जाता है।
वृक्कशूल :- अपामार्ग की 5-10 ग्राम ताज़ी जड़ को पानी में घोलकर पिलाने से बड़ा लाभ होता है। यह औषधि बस्ति की पथरी को टुकड़े-टुकड़े करके निकाल देती है। वृक्क्शूल के लिये यह प्रधान औषधि है।
योनिशूल :- इसकी जड़ को पीसकर रस निकालकर रुई को भिगोकर योनि में रखने से योनिशूल और मासिक धर्म की रुकावट मिटती है।
गर्भधारणार्थ :- अनियमित मासिक धर्म, या अधिक रक्त स्त्राव के कारण से जो स्त्रियां गर्भ धारण नहीं का पाती, उन्हें ऋतुस्नान के दिन से उत्तम भूमि में उत्पन्न इस दिव्य बूटी के 10 ग्राम पान, या इसकी 10 ग्राम जड़ को गाय के 125 ग्राम दूध के साथ पीस छानकर 4 दिन तक सुबह दोपहर तथा सांय पिलाने से स्त्री गर्भ धारण कर लेती है। यह प्रयोग यदि एक बार में सफल न हो तो अधिक से अधिक 3 बार करें।
रक्तप्रदर :- अपामार्ग के ताजे पत्र लगभग 10 ग्राम हरी दूब 5 ग्राम दोनों को पीसकर 60 ग्राम जल में मिलाकर छान लें, तथा गाय के दूध में 20 ग्राम या इच्छनुसार मिश्री मिलाकर प्रातः काल सात दिन तक पिलाने से अत्यंत लाभ होता है। यह प्रयोग रोग ठीक होने तक नियमित करें, निश्चित रूप से रक्त प्रदर ठीक हो जाता है। यदि गर्भाशय में गाँठ की वहज से रक्तस्राव होता हो तो भी गाँठ भी इससे घुल जाता है।
सुखप्रसव :- पाठा, कलिहारी अंडूसा अपामार्ग इनमें से किसी एक औषधि की जड़ को नाभि बस्ति -प्रदेश तथा भग प्रदेश पर लेप देने से प्रसव सुख पूर्वक होता है। प्रसव पीड़ा प्रारम्भ होने से पूर्व अपामार्ग के जड़ को एक धागे में बांधकर कमर में बाँधने से प्रसव सुखपूर्वक होता है, परन्तु प्रसव होते ही उसे तुरंत हटा लेना चाहिए।
सद्द क्षत :- सद्य क्षत में प्रवृत होते हुये रुधिर को रोकने के लिये अपामार्ग के 2-3 पत्रों को हाथ से मसलकर या कूटकर स्वरस निकाल लें उसके स्वरस को (सद्य क्षत) घाव में टपकने से रक्त प्रवाह रुक जाता है।
कीट दंश :- ततैया, बिच्छू तथा अन्य जहरीले कीड़ो के दंश पर पत्र स्वरस लगा देने से जहर उत्तर जाता है। काटे स्थान पर बाद में 8-10 पत्तों को पीसकर लुगदी बाँध देते हैं इससे व्रण दूषित नहीं हो पता है।
व्रण :- व्रणों विशेषकर दूषित व्रणों में इसका स्वरस मलहम के रूप में लगाने से व्रण का रोपण होता है तथा घाव पकने का भय नहीं रहता।
कण्डूरोग :- अपामार्ग के क्वाथ से स्नान करने पर कण्डू रोग दूर हो जाता है।
संधि शोथ :- संधि शोथ में इसके 10-12 पत्रों को पीसकर गर्म करके बाँधने से लाभ होता है। संधि शोथ व दूषित फोड़े फुंसी या गाँठ वाली जगह पर पत्ते पीसकर लेप लगाने से गाठ धीरे-धीरे छूट जाती है।
ज्वर :- इसके 10-20 पत्तों को 5-10 नग काली मिर्च और 5-10 ग्राम लहसुन के साथ पीसकर 5 गोली बनाकर 1-1 गोली ज्वर आने से दो घंटे पहले देने से सर्दी से आने वाला ज्वर छूटता है।
मसूरिका या चेचक के प्रतिरोध हेतु :- 1. हल्दी और अपामार्ग की जड़ दोनों को बराबर मात्रा में लेकर, खूब पीसकर हाथ पैरों के नाखूनों पर तथा इसी का माथे पर एक तिलक लगाने से चेचक नहीं निकलती है।
- यदि चेचक निकल आई हो तो इसकी स्वच्छ जड़ को पीसकर फुंसियों पर लगाने से शांति प्राप्त होती है।
विशेष :- औषधि कर्म श्वेत अपामार्ग श्रेष्ठ है।
- आमाशय के विकारों पर इसका प्रयोग बड़ी मात्रा में नहीं करना चाहिये।
स्वानुभूत प्रयोग :- 1. गंगोत्री के प्रसिद्ध स्वामी अपरोक्षानन्द जी, जो की जिला बिलासपुर (छत्तीसगढ़) के रहने वाले हैं, उनकी माताजी लगभग 80 वर्ष आयु की है। जब हमें उनसे नीलना हुआ तो देखा कि उनके दांत बहुत मजबूत एवं सुंदर है। उनसे पूछा कि आपके दांत आज तक इतने मजबूत कैसे हैं, तो उन्होंने कहा कि मैं अपामार्ग के कांड की दातुन करती हूँ तथा जब अपामार्ग ताजा नहीं मिटता है तो सूखी हुई अपामार्ग काण्ड को पानी में भिगोकर दातुन करती हूँ। छत्तीसगढ़ के सुदूर ग्रामीण इलाकों में भी हमने उपरोक्त विधि से दातुन के प्रयोग करने वाले बहुत से लोगों के वृद्धावस्था में भी दांतों की मजबूती का रहस्य का कारण पाया।
- हमने काफी लोगों पर इसे आजमाकर कर देखा तो पाया कि इसके पत्रों को पीसकर लगाने पर फोड़े फुंसी आदि चर्म रोग तथा गाँठ के रोगी भी इससे ठीक हुए हैं।
Apamarg, Latjira, Mayurak ke Aushadhiya Gur, Fayade, labh, Latjira/apamarg/lahchichari ki davayen, prayog vidhi, apamarg/latjira se kaun kaun se davainyan banti hain?.