चेतक और महाराणा प्रताप|Chetak and Maharana Pratap ki Beerata
महाराणा के घोड़े का नाम | चेतक (चेतक घोडा बहुत ताकतवर था उसके मुँह के आगे हाथी की सूंड लगाई जाती थी जिससे हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े हुआ करते थे)। |
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चेतक की विशेषताएं | वफादार, अथक, निडर, स्वामी भक्त, युद्ध कला में निपुण, बुद्धिमत्ता एवं वीरता से परिपूर्ण |
कद | छोटा कद, गठीला लम्बा बदन |
रंग | नील वर्ण |
बालों का प्रकार | घुंघुंराले, तरंगित |
बालों का रंग | नीला |
आँखे | नीली/चमकीली |
चेतक की नश्ल | मारवाड़ी नश्ल होने के कारण चेतक का कद छोटा था (कुछ लोगों का मत है कि चेतक अरबी मूल का घोडा था ) |
मस्तक | ऊंची मस्तक वाला |
चेहरा | लम्बा |
गर्दन | मोर की तरह |
काठी /कोट | चेतक का कोट नीले रंग का था |
मृत्यु | 18 जून 1576 |
मृत्यु स्थल | हल्दी घटी युद्ध |
अंतिम संस्कार | चेतक का अंतिम संस्कार महाराणा प्रताप और उनके भाई शक्ति सिंह द्वारा हल्दी घटी के प्रांगण में वहीं किया गया था जहाँ चेतक वीर गति को प्राप्त हुआ था. |
श्रद्धांजलि : अमर, वीर, सपूत, राष्ट्रभक्त महाराणा प्रताप एवं हल्दीघाटी में वीर गति को प्राप्त शहीदों के साथ चेतक को सत् -सत् नमन एवं भाव भीनी श्रद्धांजलि।
महाराणा प्रताप एवं चेतक के याद में श्याम नारायण पाण्डे द्वारा रचित वीर रस की कविता प्रस्तुत है :-
रणबीच चौकड़ी भर-भर कर,
चेतक बन गया निराला था
राणाप्रताप के घोड़े से,
पड़ गया हवा का पाला था।
जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड जाता था,
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड जाता था।
गिरता न कभी चेतक तन पर
राणाप्रताप का कोड़ा था,
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर
वह आसमान का घोड़ा था।
था यहीं रहा अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा था यहाँ नहीं,
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं।
निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौडा करबालों में
फँस गया शत्रु की चालों में।
बढते नद सा वह लहर गया,
फिर गया गया फिर ठहर गया
बिकराल बज्रमय बादल सा,
अरि की सेना पर घहर गया।
भाला गिर गया गिरा निशंग
हय टापों से खन गया अंग,
बैरी समाज रह गया दंग,
घोड़े का ऐसा देख रंग।