365 अनमोल वचन, अनमोल विचार, अनमोल बोल | Anmol Vachan, Anmol Vichar, Anmol Bol in Hindi
365 अनमोल वचन, अनमोल विचार, अनमोल बोल : वेद, पुराण एवं महापुरषों द्वारा रचित वर्ष के 365 दिनों के अनमोल वचन, सुविचार जिन्हे पढ़ने मात्र से अंतरात्मा में अलौकिक ऊर्जा का संचार होकर मन आनंद रस से भर जाता है। अनमोल विचार, अमृत वचन से सकारात्मक सोच का सृजन होता है जिससे जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है। वर्ष के ३६५ दिनों के लिए शर्वश्रेस्ठ अनमोल वचन एवं अतुलनीय सुविचार निम्नलिखित हैं:- ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को शीतल करे, आपहुं सीतल होय॥
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अनमोल वचन, अमृत वचन, सुविचार-ANMOL VACHAN, AMRIT VACHAN, SUVICHAR
हर अच्छा काम पहले असम्भव दीखता है।
बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपहुं शीतल होय।।
“बातहि हाथी पाइए, बातहि हाथी पाँव”।
श्री राम के नाम का स्मरण करो।
शत्रु पड़ित मुर्ख हितैषी से अच्छा है।
प्रभू सबको समान दृष्टि से देखते हैं।
हे प्रभू हमारा मन शुभ मार्ग का अनुसरण करें।
गाँधी जी ने रामराज्य की परिकल्पना की थी।
क्षमा करने वाले की आत्मा पवित्र होती हैं।
महापुरुषों का चरित्र ही सच्चा इतिहास हैं।
कर्म फल हैं तथा शब्द पतियाँ।
कृतज्ञता साँप के दांतो हे भी अधिक तीखी होती हैं।
बिना अनुभव कोरा शब्दिक ज्ञान अन्धा हैं।
चुगलखोर हे दूर रहना चाहिए।
जो ह्दयस्थ हैं उनकी शरण लो।
मन के हाथी को विवेक के अंकुश में रखो।
दूसरों का भला करने वाला ही भला होता हैं।
ज्ञान पुरस्सर ही यज्ञ किया जाता हैं।
जिसकी तिथि नहीं हैं अतिथि।
महान कर्म महान मसितष्क को सूचित करतें हैं।
बुध्दिमान की बुध्दि दर्पण के समान होते हैं .
गगा जल तो अमृत के समान हैं।
बालक का भाग्य सदा माता के हाथ होता हैं।
पति की शोभा ही पत्नी की शोभा हैं।
अज्ञानी ही डूबा करते हैं।
सोता साधु जगाइए जब करे राम का जाप।
तुम मुझे खून दो मै तुम्हें आजादी दूगा।
परिश्रम कभी ब्यर्थ नहीं जाता।
भगवान को अपने भक्त प्रति प्यारे हैं।
कृतज्ञता ह्दय के स्मृति हैं।
आत्म विश्वास सूरवीरता का रहष्य हैं।
देशद्रोही को क्षमा न करें उसे सजा दो।
परनारी को माता के समान जानो।
केवल बहादुर ही क्षमा करना जानते हैं
कपट रहित ह्दय ही प्राणी मात्र पर दया करते हैं।
समय परिवर्तन की सम्पति हैं।
केवल एकान्त ही आधी समाधि हैं।
आशा के अभाव में समय ससार निराश सीखता हैं।
तप का फल है प्रकाश और ज्ञान।
परमात्मा पूजा का नहीं प्रेम का भूखा हैं।
तुम न भयभीत हो न परेशान।
भूत दया ही संतो की पूजी हैं।
पाप को मानना मुकित का द्धार हैं।
साधु सग से माया रूपी नशा /उतर जाता है।
विचार शून्य हा मूर्ख है।
क्षमा करने वाला महान होता हैं।
ज्ञान का निरादर अपने मसितष्क का अपमान है।
प्रभु को हर समय याद रखो।
48 कायर हमेशा भाग्य को कोसता है।
कायरों का कभी भरोसा मत करो।
आराम सबसे अच्छा तकिया हैं।
यश वह प्यास है जो बुझाने पर भी नहीं बुझती।
आलसी हमेशा निराश रहता है।
अम्रत्व का बीज पुण्य है।
आलस्य जीवित ,मनुष्य की चिता है।
चिन्ता जीवन की दुश्मन है।
नारी ही दोनों कुलों का नाम रोशन करती है।
अभिमान का सिर निचा होता है।
बुराई का उत्तर भलाई से दो।
श्री हरि घट में बास करते है।
इस ससार में दुष्ट की रक्षा नही।
हर भारतीय को देशभक्त होना चाहिए।
बिना अध्ययन के ज्ञान नहीं मिलता।
परोपकार से पुन्य मिलता है।
बीमार के इलाज में परहेज जरूरी है।
मेल मिलाप उन्नति के आत्मा है।
हमारी संस्कृति में नारी का स्थान बहुत ऊंचा है।
गृहस्थी में सारे सुखों की प्राप्ति होती है।
अपनी गलती मान लेना महान चरित्र का लक्षण है।
भय दूरदर्शिता की जननी है।
दुष्टों का तेज नष्ट करना मेरा कर्तब्य है।
वाणी से मनुष्य के अन्तकरण की परीक्षा हो जाती है
जो पैदा हुआ है वह अवश्य ही मरेगा।
अति सघर्ष करे जो कोई अनल प्रकट चन्दन से होई।
मुँह में राम बगल में छुरी मत रखो।
निराशा मूर्खता का परिणमा है।
ससार केवल स्वपन के समान है।
सच्चे आनन्द का आधार अन्त:करण में है।
देश द्रोही को दण्ड देना चाहिए।
भगवान अपने भक्तों पर दया करते है।
समय पर स्त्री दुर्गा भी बन जाती है।
वीरता खुद को संभाल लेने में है।
सत्सग से दुष्ट भी सुधर जाते है।
अज्ञान भय की माता है।
आलस्य भी एक प्रकार की हिंसा है।
अच्छी आदतों से शक्ति बढ़ती है।
कमजोरी सबसे बड़ा पाप है।
हानि क्या है? अवसर से चूकना।
मेल मिलाप उन्नित की आत्मा है।
गुण सब स्थानों पर अपना आदर करा लेता है।
गंगा जल अमृत के समान पवित्र है।
बच्चे भगवान का स्वरूप होते हैं।
जल अत्यन्त आरोग्यप्रद एवं बलदायक है।
जो ईश्वर में लीन रहता है वही सच्चा संत है।
सदा सत्पुरुषों की संगति में रहना चाहिए।
जिस कुल में जो पुरुष प्रमुख है, उसकी सभी उपायों से रक्षा करे।
कलियुग में कीर्तन करो इसी से नारायण दर्शन देंगे।
महापुरुषों का चरित्र ही सच्चा इतिहास है।
सम्मानित ब्यक्ति की अपकीर्ति मुत्यु से बुरी है।
बुद्धिमान की बुद्धि दर्पण के समान होती है।
शुध्द भोजन से अन्त:करण शुध्द रहता है।
संत सेवा ही मुक्ति का द्वार है।
हे मन श्री हरि हरि का जाप कर।
धर्म का लक्ष्य है अन्तिम सत्य का अनुभव।
भय दूरदर्शिता की जननी है।
सुयोग्य संतान का होना ईश्वरीय कृपा है।
भष्ट राज्य में आंतकवाद फैलता है।
आत्म गौरव नष्ट करके जीना मृत्यृ से भी बुरा है।
ग्राम्य कथा कभी श्रवण न करो।
दो ही अक्षर का काम उचारो श्री राम नाम।
परोपकारी का जीवन धन्य है।
अमीर गरीब का फर्क कितना नगण्य है।
भोजन भजन एकांत में करना चाहिए।
जिसकी तिथि नहीं अतिथि।
भगवान प्रेम के भूखे है
जागना ऐश्वर्य और आलस्य मृत्यु है।
सदा सत्पुरुषों की शरण में रहना।
कृतध्न का कल्याण नहीं होता।
अपनी बुराई अपने जीवन में ही मरने दो।
मानसिक पूजा ही सर्वत्रेष्ठ पूजा है।
भाग्य पर भरोसा न करो चरित्र पर भरोसा करो।
अज्ञान को ज्ञान ही मिटा सकता है।
मै अपने चरित्र विकास के लिए माता का आभारी हूँ।
मन ही मनुष्य के बंधन एव मोक्ष का कारण है।
राम बिना यह सब जग सूना है
जवानी हिम्मत और साहस का स्त्रोत है।
गायत्री वेदो की जननी है।
यश पुष्य और दान से मिलता है।
धंर्म से राष्ट्र बड़ा होता है।
मुक्ति प्राप्त करके पुर्नजन्म नहीं होता।
अभिमान नर्क का भूत है।
चरित्र मनुष्य का सर्वस्व है।
नर जन्म में ही प्रभु की प्राप्ति सम्भव है।
बिना अध्ययन से मुक्ति नहीं मिल सकती।
शंका से शंका बढ़ती है विश्वास से विश्वास।
शूरवीर वही है जिसका ह्दय हरि से भरपूर है।
कान की शोभा शास्त्र श्रवण से है।
ज्यो ज्यों अभिशाप कम होगा यश फैलेगा।
कृतज्ञता ह्दय की स्र्मति है।
प्रेम ही प्रेम का पुरस्कार है।
प्रभु अपने भक्तो को कभी अज्ञानी नहीं रहने देते।
अज्ञान को ज्ञान ही मिटा सकता है।
स्त्री परिवार की मुक्ति है या विनाश।
जिज्ञासा बहादुरी का एक निर्मल रूप है
परिवर्तन ही सृष्टि है स्थर होना मृत्यु।
जल आरोग्यप्रद एंव बलदायक है।
श्रम के बिना उन्नति नहीं होती।
दो अक्षर का काम उचारो श्री राम नाम।
ज्यादा अमृतपान करना भी ठीक नहीं।
उपदेश करो न सलाह देने जाओ।
तप से पापी को भी मुकित मिल जाती है।
भष्ट लोगो को जनता क्षमा नहीं करेगी।
कथा अनुसरण नहीं अपितु ब्याख्या करती है।
मुखों की बात का बुरा मत मानो।
दुर्गुणों से शक्ति की बर्बादी होती है।
मानव का बड़ा मित्र उसकी दस उगलिया है।
संत भगवान को प्यारे होते।
धर्म की आड़ ने देश का बटवारा नहीं होगा।
परस्त्री को माता के समान समझो।
अज्ञान हठधर्मी की माता है।
हिंदी एक शक्ति शाली भाषा है।
एक ईश्वर ही सबका गुरु है।
अति संतान दुखों का भडार है
ब्यक्ति का अन्त:करण ईश्वर की वाणी है।
कष्ट सहने पर ही अनुभव होता है।
गंगा तो भारत की प्राचीन सभ्यता का प्रतीक है।
मुर्ख मित्र दुश्मन के समान होता है।
भोग्य वस्तु क्षण में नाश होने वाली जानो।
त्याग के सिवा इस ससार में कोई दूसरी शक्ति नहीं।
प्रेम आखों से नहीं मन से देखता है
शुध्द मन से भगवान का गुणगान करो।
जो बुध्दि अत्यन्त परे है वह आत्मा है।
प्रयत्नशील मनुष्य के लिए सदा आशा रहती है।
कान की शोभा शास्त्र श्रवण में है।
राष्ट्र भाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।
नारी में बिश्वास की भावना अधिक होती है।
धर्म से राष्ट्र से नहीं तोलना चाहिए।
सबका भोजन प्रभु के भडार से आता है।
भगवान भक्त की सदा रक्षा करते है।
प्रेमपूर्वक बोलना हो अतिथि सत्कार है।
भगवान को भोजन नहीं भाव चहिए।
दया सब गुणों में श्रेष्ठ है।
इतिहास राजनीति की पाठशाला है।
उस पुत्र से क्या जो न विद्वान् न धार्मिक।
श्रात्म विश्वास सूरवीरता का रहस्य है।
कीर्तन का विक्रय महान मूर्खता है।
परनिन्दा परचर्या कभी न करो।
औरो को अक्सर क्षमा करो खुद को कभी नहीं।
सभी प्राणी परमात्मा के सहारे जीते है।
परिश्रम से सफलता अवश्य मिलती है।
वैराग्य परमार्थ की नीव है।
गऊ ब्राम्हण की सेवा भगवान की पूजा है।
आलस्य दरिद्रता का दूसरा नाम है।
अधिक धन दुखदाई होता है।
प्रसन्न चित से सूर्य का दर्शन करे।
मेरे मन के संकल्प शुभ और कल्याणमय हो।
भाग्य साहसी मनुष्य का साथ देता है।
नारायण सभी को भोजन देते है।
यह पृथ्वी कर्म भूमि है।
मन और गुरु को एक करना ही सपना है।
विपत्ति में साहस से काम लेना चाहिए।
अज्ञान जैसा दुश्मन नहीं है।
क्रोध यमराज है
भगवान के द्वारा पर पल भर तो खड़े रहो।
देश प्रेम से बढ़कर कोई धर्म नहीं।
पुत्र की उत्पत्ति माता पिता की महिमा है।
केवल ईश्वर ज्ञान ही ज्ञान है और सब अज्ञान है।
भय में रोग का भय है।
अज्ञान जैसा दूसरा शत्रू नहीं है।
कष्ट ह्दय की कसौटी है।
भगवान सदा भक्त के ह्दय में रहते है।
जहाँ विषयों की चर्चा होती है वही नर्क है।
श्रम कभी बेकार नहीं जाता।
अपनी विद्वता पर अभिमान करना बड़ा अज्ञान है।
छोटा परिवार सुख की निशानी है।
पड़ितजन समदर्शी होते हैं।
समय परिवर्तन की सम्पति है।
दयाशील अन्त करण प्रत्यक्ष स्वर्ग है।
नीच से देवता भी डरते है।
बदहजमी में भोजन करना अहितकर है।
सब धर्मो का स्वमी एक ही है।
निसार है यह संसार यहाँ सार है केवल भगवान।
उन्नति आगे की ओर ईश्वर का लम्बा पग है।
निर्णय जल्दी दो लेकिन देर तक सोचने के बाद।
हरि कथा सुख की समाधि है, स्जन सबका हित चाहते है।
प्रेमपूवर्क बोलना ही अतिथि सत्कार है।
मित्रता या दुश्मनी बराबर वालो से करनी चाहिए।
अतिथि की सेवा करना बड़ा पुण्य है।
घी का नाम लेने से पित शांत नहीं होता।
नियमित खाना पेट के लिये पथ्यकारक होता है।
दरिद्रता और धन तुलनात्मक पाप है।
शुद्ध चरित्र ठोस शिक्षा की बुनियाद है।
तप का फल है प्रकाश और ज्ञान।
रजोगुण से उतपन्न हुआ काम ही क्रोध है।
जहाँ विषयों की चर्चा होती है वहीं नर्क है।
मेरे मन के संकल्प शुभ और कल्याणकारी हों।
क्षमा सत्य और त्याग सेवा का आधार है।
जहाँ वासना है वहाँ सत्य का क्या काम ?
स्त्री के वश में होना सर्वनाश का बीज बोना है।
केवल हिन्दी ही राष्ट्र भाषा हो सकती है।
जहाँ हरि चर्चा होती है वहीं स्वर्ग है।
पति की शोभा पत्नी की शोभा है।
मेरा चिन्त वित पुण्य सब कुछ श्री हरि थे।
प्रभु के भजन ही जीनव का सुफल था।
काम उधम से सिध्द होते है मनोरथ मात्र से नहीं।
जो मुक्ति के योग्य बनाऐ वह विद्या हैं।
प्रत्येक देश भक्त को सैनिक होना चाहिए।
सुख दुःख जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिये है।
साधु संग करने से जीव का मायारुपी नशा उतर जाता हैं।
दुष्टों को दण्ड देने में कोई दोष नही हैं।
जीवन में सबसे बड़ी कला तपस्या हैं।
जहाँ हरि चर्चा होती है व्ही स्वर्ग हैं।
श्री हरि का जाप करने से मुक्ति मिलती हैं।
कामना का त्याग उतम तप हैं।
इतिहास पढ़ने से पुरुष बुध्दिमान होता हैं।
एक मूर्ख खुद को बुद्धिमान समझता है।
एक बुद्धिमान व्यमक्ति खुद को मूर्ख समझता है।
बहुत से गुणों के होने के बावजूद भी सिर्फ एक दोष सब कुछ नष्ट कर सकता है।
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