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अमलतास, धनबहेड़ा – AMALTAS or DHANBAHEDA

अमलतास का परिचय:-

यह पूरे भारतवर्ष में पाया जाता है। मार्च -अप्रैल में वृक्षों की पत्तियां झाड़ जाती हैं। तदुपरांत नई पत्तियां और पुष्प प्रायः साथ ही निकलते है, उसके बाद फली लगती है जो डेढ़-दो फुट लम्बी गोल, नुकीली और वर्ष भर लटकी रहती है।

                                     बाह्य- स्वरूप

मध्यम कद का वृक्ष, कांड धूसरवर्ण या कुछ-कुछ लाल होती है। पत्र संयुक्त 1 फिट लम्बा जिसमें 4 से 8 जोड़ी पत्रक लगे हुये होते है। पुष्पमंजरी लम्बी और नीचे लटकती रहती है। जिस पर चमकीले पीले रंग के पुष्प लगे रहते है। फली 1-2 फुट लम्बी, बेलनाकार, कठोर, आगे से नुकीली, 1 इंच व्यास की , कच्ची अवस्था में हरी और पकने पर लाल तथा काली हो जाती है। फली में 25-100 तक चपटे पीताभ धूसर वर्ण के बीज होते हैं। फली के अंदर का भाग अनेक कोष्ठों में विभक्त रहता है।

                                      रासायनिक संघटन

इसके फल की मज्जा में ऐंथ्रोक्विनोन, शर्करा, पिच्छिल द्रव्य, ग्लूटोन, पेक्टिन, रंजक द्रव्य, कैल्शियम ऑक्जेलेट, क्षार, निर्यास एवं जल होते है। काण्ड त्वक में टैनिन, मूलत्वक, में फ्लोवेफीन तथा ऐंथ्रोक्विनों होते है। पत्र और पुष्प में ग्लाइकोसाइड्स पाये जाते हैं।

                                         गुण- धर्म

यह भारी, मृदु, रिंगद्ध, मधुर और शीतल होता है। यह ज्वर, हृदय रोग, रक्त पित, वात, उदावर्त और शूल को नष्ट करने वाला है। इसकी फली रुचिकारक, कुष्ठ नाशक, पुत्तकफ नाशक, कोधतः को शुद्ध करने वाली था ज्वर में पथ्य है। इसके पटे मृदु वरेचक और कफ का नाश करने वाले है। इसके फूल स्वादिष्ट, शीतल, कडुवे, कसैले, वातवर्धक तथा कफपित्तहर हैं। इसके फल की मज्जा जठराग्नि को बढ़ाने वाली, रिंगद्ध, मदुर रस, रेचक तथा वातपित्त को नष्ट करती है। इसकी मूल वातरक्त, मण्डलकुष्ट, दाद, चर्मरोग, क्षय, गण्डमाला, हरिद्रमेह शोथ आदि नाशक है। अमलतास, पाठा, कुञ्ज, निम्ब यह सब श्लेष्मा, विष, कुष्ठ, प्रमेह, ज्वर, वमन, कण्डू नाशक तथा व्रण शोधक है। अमलतास, सुधा, दांती यह सब गुल्म एवं विषनाशक, आनाह, उदररोग नाशक मल विरेचन एवं उदावर्त्तनाशक है।

                                      औषधीय प्रयोग

कण्ठमाल :- इसकी जड़ को चावल के पानी के साथ पीसकर सुंघाने और लेप करने से कण्ठमाला में आराम होता है।

मुखपाक :- फल मज्जा को धनिये के साथ पीसकर थोड़ा कत्था मिलाकर मुख में रखने से अथवा केवल गूदे को मुख में रखने से मुखपाक रोग दूर होता है।

अर्दित :- 1. अमलतास के 10-15 पत्रों को गर्म करके उनकी पुल्टिस बाँधने से सुन्न्वात, गठिया और अर्दित में फायदा होता है।

  1. वात वाहिनियों के आघात से उत्पन्न अर्दित एवं वात रोगों में इसका पत्र स्वरस पिलाने से लाभ होता हैं।
  2. पत्र स्वरस पक्षाघात से पीड़ित स्थ पर मलिश करने से भी लाभ होता है।

नाक की फुंसी :- इसके और पत्ते छाल को पीसकर नाक की छोटी- छोटी फुंसियों पर लगाते हैं।

ज्वर कफ आदि :- फल मज्जा को पीपरामूल, हरीतकी, कुटकी, मोथा के साथ समभाग मिला क्वाथ बनाकर पीने से आंव, शूल, वात, ज्वर में लाभ होता है। यह क्वाथ दीपन और पाचन भी है।

खांसी :- 1. अमलतास की गिरी 5-10 ग्राम को पानी में घोट उसमें तिगुना बूरा दाल गाढ़ी चाशनी बनाकर चटाने से सूखी खांसी मिटती है।

  1. इसका 20 ग्राम गुलकंद खाने से खुश्क खांसी तर हो जाती है।

टांसिल :- कफ के कारण टांसिल बढ़ने पर जल पीने में भी जब कष्ट होता है तब इसकी जड़ की 10 ग्राम छाल को थोड़े जल में पकाकर उसका बूँद -बूँद कर मुख में डालते रहने से आराम होता हैं।

श्वांस :- इसकी फल मज्जा का 40-60 ग्राम क्वाथ पिलाने से मृदु विरेचन होकर श्वास की रुकावट मिटती है।

उदरशूल :- उदर शूल और अफारे में इसकी मज्जा को पीसकर बच्चों की नाभि के चारों ओर लेप करने से लाभ होता है।

पित्त प्रकोप :- इसके गूदे के 40-60 ग्राम काढ़े में 5-10 ग्राम इमली का गूदा मिलाकर प्रातः काल पिलाने से पित्त प्रकोप में लाभ होता है। यदि रोगी को कफ की अधिकता हो तो इसमें थोड़ा निशोथ का चूर्ण भी मिलाना चाहिए।

उदावर्त :- चार वर्ष से लेकर बारह वर्ष तक का बालक यदि दाह तथा उदावर्त रोग से पीड़ित हो तो उसे अमलतास की मज्जा को 2-4 नग मुनक्का के साथ देना चाहिये।

उदरशुद्धि :- 2-3 पत्तों को नमक और मिर्च मिलाकर खाने से उदर शुद्धि होती है।

हारिद्रमेह :- इसके 10 ग्राम पत्तों को 400 ग्राम पानी में पकाकर चतुर्धाश शेष क्वाथ का सेवन हारिद्रमेह में लाभकारी है।

कब्ज :- पुष्पों का गुलकंद, आंत्र रोग, सूक्ष्मज्वर एवं कोष्ठबद्धता में लाभदायक है। कोमलांगी स्त्री को इसका सेवन 25 ग्राम तक रात्रि के समय कोष्ठ बद्धता में कराना चाहिये।

विरेचन :- इसके फल के 15-20 ग्राम गूदे को मुनक्का के रस के साथ देने से उत्तम विरेचन होता है।

अंडकोषवृद्धि :– अमलतास फली की 15 ग्राम मज्जा को 100 ग्राम पानी में उबालकर 25 ग्राम शेष रहने पर उसमें गाय का घी 30 ग्राम मिलाकर पीने से अंडकोष वृद्धि में लाभ होता है।

कोष्ठ शुद्धि :- फली मज्जा को 5-10 ग्राम की मात्रा में गाय के 250 ग्राम गर्म दूध के साथ देने से कोष्ठ शुद्ध हो जाता है।

पित्तोदर :- इसके गूदे का 40-60 ग्राम काढ़ा पित्तोदर में लाभप्रद है।

कामला :- इसे गन्ने या भूमि कुष्मांड या आंवले के समभाग रस के साथ दिन में दो बार देने से कामला रोग में लाभ होता है।

विरेचक :- इसके फल का गुदा सर्वश्रेष्ठ मृदु विरेचक है। यह ज्वर अवस्था, सुकुमार, बालक एवं गर्भवती महिलाओं को दिया जाता है।

सुख प्रसव :- अमलतास की 4-5 फली के 25 ग्राम छिलकों को औटाकर उसमें शक्कर मिलाकर छानकर गर्भवती स्त्री को सुबह-शाम पिलाने से बच्चा सुख से पैदा हो जाता है।

वातरक्त :- अमलतास मूल 5-10 ग्राम को 250 ग्राम दूध में उबाकर देने से वातरक्त का नाश होता है।

आमवात :- आरग्वध के 2-3 पत्तों को सरसों के तैल में भूनकर सांय के भोजन के साथ सेवन करने से आमवात में लाभ होता है।

कुष्ठ :- 1. अमलतास के 10-15 पत्तों को पीसकर लेप करने से कुष्ठ, चकत्ते आदि चर्म रोगो में लाभ होता है।

  1. अमलतास की 15-20 पत्तियों से बना लेप कुष्ठ का नाश करता है।

अमलतास की जड़ का लेप कुष्ठ रोग के कारण हुई वकृत त्वचा को हटाकर व्रण स्थान को समतल कर देता है।

*विसर्प :- 1. इसके 8-10 पत्तों को पीसकर, घृत मिश्रित कर लेप करने से विपर्स में लाभ होता है।

*विसर्प में ज्वर के साथ-साथ सारे शरीर पर छोटी-छोटी फुंसियाँ निकल आती हैं।(एक प्रकार का शारीरिक रोग)

  1. किक्किस रोग, सद्दोव्रण में अमलतास के पत्तों को स्त्री के दूध या गोदूध में पीसकर लगाना चाहीये।

रक्तपित्त :- फल मज्जा को अधिक मात्रा में लगभग 25 से 50 ग्राम में 20 ग्राम मधु और शर्करा के साथ सुबह -सांय देना ऊध्र्वगत, रक्तपित्त में लाभप्रद है।

दाह/दाद :- 1. इसकी 10-15 ग्राम मूल या मूल त्वक को दूध में उबालकर पीसकर लेप करने से दाह और दाद में लाभ होता है।

  1. अमलतास के पंचाग जो जल के अंदर पीसकर दाद खुजली और दूसरे चरम विकारों पर लगाने से जादुई असर होता है।

ज्वर :- इसकी जड़ ज्वर नाशक और पौष्टिक औषधि के रूप में प्रयुक्त होती है।

शिशु की फुंसी :- पत्तों को गोदूध के साथ पीसकर लेप करने से नवजात शिशु के शरीर पर होने वाली फुंसी या छाले दूर हो जाते है।

व्रण :- अमलतास, चमेली, करंज इनके पत्तों को गोमूत्र के साथ पीसकर लेप करे, इससे व्रण, दूषित अर्श और नाड़ी व्रण नष्ट होता है।

कंटकरोग :- पद्यिनी (पदिमनी) कंठरोग में अमलतास और नीम का 40-60 ग्राम क्वाथ का नित्य प्रयोग उत्तम है।

पित्त :- लाल रंग के निशोथ के क्वाथ के साथ अमलतास की मज्जा का कल्क मिलाकर अथवा बेल के क्वाथ के साथ अमलतास की मज्जा का कल्क, नमक एवं मधु मिलाकर पित्त की प्रधानता में 10-20 ग्राम की मात्रा में पीने चाहिये।

स्वानुभूत प्रयोग :- अमलतास के 10 से 20 ग्राम गूदे को रात में 500 ग्राम पानी से भिगोकर प्रातः मसलकर छानकर पीने से विरेचन हो जाता है। ऐसा हमें अनेक रोगियों को देने से अनुभव हुआ है।

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