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अंकोल, दीर्घ कील, ढेरा(Tlebid Alu Retis) के औषधीय गुण

वैज्ञानिक नाम
Alangium salvifolium (L.F.) Wang
कुलनाम
Alangiaceae
अंग्रेजी नाम
Tlebid Alu Retis
संस्कृत
अंकोल, अंकोट, दीर्घ कील
हिंदी
अंकोल, ढेरा
गुजराती
અંકલ
मराठी
अंकोल
बंगाली
হত্যাকাণ্ড, বাঘের পরিসংখ্যান
तेलगु
Ancolmu
तमिल Aelading
                                                                                      

                                                                 अंकोल का पौधा

अंकोल का परिचय:-

अंकोल के छोटे तथा बड़े दोनों प्रकार के वृक्ष पाये जाते है जो प्रायः वनों में शुष्क एवं उच्च भूमि में उत्पन्न होते हैं। यह हिमालय की तराई, उत्तर प्रदेश, बिहारम बंगाल, राजस्थान, दक्षिण भारत एवं बर्मा में पाया जाता है।

                                                                     बाह्य-स्वरूप

इसके वृक्ष 10 से 20 फुट तक ऊँचे, काण्ड मोटा एवं गोल, काण्ड़त्वक धूसर रंग की पत्तियां 3-6 इंच लम्बी एकांतर विभिन्न आकार की होती है। ग्रीष्म के आरम्भ में ही निष्पत्र वृक्ष पर पुष्पागमन होता है। पुष्प श्वेत, पीताभ श्वेत पौने इंच लम्बे, एल अथा गुच्छों में, पुष्पव्यूह एवं कैलिक्स मृदु मखमली रोमावृत तथा पुष्प सुगन्धित होते हैं। फल गोलाकार या अंडाकार, एककोशीय बीज-स्थूल आवरण तथा पिच्छिल होते है।

                                                                     रासायनिक संघठन

इसके छाल में एलेनबीन नामक तिक्त एल्केलाइट पाया जाता है।

                                                                      गुण- धर्म

रेचक, कृमिघ्न, शूल, आम, सूजन, गृह, विसर्प, कफ, पित्त, रुधिर विकार तथा सांप, मूषक के विष को नाश करने वाला है।

फल :- शीतल, स्वादिष्ट, भारी, बृहण, रेचक, बल्य, वातपित्त तथा दाह को हरने वाला तथा क्षय नाशक है।

बीज :- अंकोल के बीज शीतल, स्वादिष्ट भारी पाक में मधुर, बल्य, सारक, स्निग्ध वृष्य तथा दाह पित्त वात क्षय और रक्त विकारों को दूर करने वाले हैं।

                                                                     औषधीय प्रयोग

जलोदर :– इसकी जड़ के चूर्ण को 1.5 से 3 ग्राम तक की मात्रा दोनों समय देने से यकृत की क्रिया में सुधार होकर जलोदर में लाभ होता है।

दमा :- 1. अंकोल की जड़ को नीबू के रस में गाढ़ा-गाढ़ा घिसकर आधा चम्मच सुबह-शाम भोजन से दो घंटे पूर्व लेने से दमें में चमत्कारिक लाभ होता है।

  1. अंकोल की छाल, राई, लहसुन 6-6 ग्राम खूब महीन कर उसमें 15 ग्राम तीन वर्ष पुराना गुड़ मिलाकर गोली बनाकर दमें के रोगी को खिलाने से वमन द्वारा कफ बाहर निकल जाता है।

मूत्रकृच्छ्र :- इसकी 5 ग्राम जड़ का क्वाथ बनाकर पीने से मूत्र खुलकर होने लगता है तथा रोगी को आराम हो जाता है।

अतिसार :- 1. इसके 10 ग्राम फल के गूदे को 2 चम्मच मधु में मिलाकर चावलों के पानी के साथ सुबह,दोपहर तथा शाम खाने से अतिसार रोग नष्ट होता है।

  1. इसकी जड़ की छाल के 500 मिलीग्राम से 1 ग्राम चूर्ण को चावल के पानी के साथ महीन पीसकर सुबह-शाम सेवन करने से सब प्रकार के अतिसार और संग्रहणी में लाभ होता है।

आमातिसार :- 1. आम अतिसार में इसका 3 ग्राम पत्रस्वरस दूध के साथ पिलाने से पहले दस्त होकर पेट साफ होने के बाद फिर अतिसार में लाभ होता है।

  1. 500 मिलीग्राम कूड़ा छाल चूर्ण और 500 मिलीग्राम अंकोल की जड़ की छाल का चूर्ण दोनों शहद में मिलाकर चावलों के पानी के साथ सेवन करने से अतिसार व संग्रहणी में लाभ होता है।

आंत्रकृमि :- इसके जड़ की छाल, 5 ग्राम, के चूर्ण की फंकी दोनों समय लेने से पेट के कीड़े मर जाते है।

वमन :- श्वेत पुष्पी अंकोल के मूल चूर्ण की 3 ग्राम फंकी लेने से निर्विध्न वमन हो जाती है।

कब्ज :- इसकी जड़ के चूर्ण की 375 मिलीग्राम तक की फंकी लेने से कोष्ठबद्धता में लाभ होता है

बवासीर :- इसकी जड़ की छाल का 1 ग्राम चूर्ण काली मिर्च के साथ फंकी देने से बवासीर में लाभ होता है।

सुजाक :- तिल का क्षार 4 ग्राम और अंकोल के फलों का गूदा 5 ग्राम दोनों को 2 चम्मच शहद में मिलाकर सुबह-शाम खाने से सुजाक में लाभ होता है।

मूत्राघात :- अंकोल के फल का गूदा 5  ग्राम और तिलों का क्षार 4 ग्राम को 2 चम्मच मधु में मिला कर दही के पानी के साथ दोनों समय देने से मूत्राघात मिटता है।

गठिया :- इसके पत्तों की पुल्टिस बांधने से गठिया की पीड़ा मिटती है।

कुष्ठ रोग :- अंकोल जड़ की छाल, जायफल, जावित्री और लौंग प्रत्येक 625-625 मिलीग्राम की मात्रा में बारीक पीसकर सुबह -शाम फंकी देने से कोढ़ का बढ़ना बंद हो जाता हैं। .

ज्वर :- 1. इसकी जड़ के चूर्ण की 2 से 5 ग्राम तक की मात्रा दोनों समय देने से पसीना आकर मौसमी ज्वर उत्तर जाता है।

  1. अंकोल की जड़ 10 ग्राम कूठ और पीपल 3-3 ग्राम तथा बहेड़ा 6 ग्राम इसको एक किलोग्राम जल में उबाल लें। जब आठवा हिस्सा शेष रह जाये तो ठंडाकर छान लें तथा मिश्री मिलाकर दोनों समय पीने से इन्फ्लुएंजा या संक्रामक प्रतिश्याय पर परम् लाभ होता है।

डेंगू ज्वर :- 1. इसकी जड़ के चूर्ण 3 ग्राम को मीठी बच या शुंठी चूर्ण 2 ग्राम के साथ चावल के मांड में पकाकर सेवन करने से लाभ होता है। यह फ्लू में भी लाभकारी है।

  1. ज्वर में वेदना स्थान पर इसके पत्तों को गर्म कर बाँध देना चाहिए।

दाह युक्त ज्वर :- 1. दाह युक्त ज्वर में इसके फलों को पानी में पीसकर शरीर पर मलने से दाह ज्वर शांत होता है।

  1. इसकी जड़ और सौंठ को पानी में पीसकर दाह युक्त ज्वर में शरीर पर मलने से लाभ होता है।

स्वेद रोग :- अंकोल के फलों 2-3 ग्राम चूर्ण की फंकी देने से और ऊपर से वासा क्वाथ नित्य पिलाने से अति स्वेद रोग मिटता है।

रक्तस्राव :- 1. इसके फलों के 5 ग्राम चूर्ण को मिश्री 10 ग्राम के साथ पीसकर पिलाने से मुँह से रुधिर का बहना बंद हो जाता है।

  1. इसकी जड़ की छाल को तेल में सिद्ध करके मालिश करने से गठिया की तीव्र पीड़ा मिटती है।

व्रण :- किसी तेज धार वाले हथियार से कट जाने पर अंकोल के बीजों के ते में रुई का फाहा भिगोकर कटे हुए स्थान पर लगाने से बहता हुआ रक्त बंद हो जाता है।

चर्म रोग :- इसकी जड़ की छाल को पीसकर लेप करने से त्वचा के रोग मिटते है।

ग्रंथि :- चाहे बंद गाँठ हो या प्लेग गाँठ हो, अंकोल की जड़ को पानी में घीसकर उस गाँठ पर लेप कर देने से तुरंत लाभ होता है।

विष :- बिच्छू के डंक लगने पर इसकी जड़ की छाल को पीसकर लेप करे अथवा इसी लेप में सरसों का तेल मिलाकर कान में डाले।

चूहे का विष :- इसकी जड़ को जल में पीसकर 2-3 बार पिलाने से चूहे का विष उत्तर जाता है।

सर्प विष एवं विषैले कीड़े मकौड़े के काटने पर :- इसकी 15 ग्राम जड़ का 2 किलोग्राम जल में क्वाथ बनाकर छानकर 15-15 मिनट पर 50 ग्राम क्वाथ में गर्म किया हुआ गाय का घी 50 ग्राम मिलाकर पिलायें।  दस्त और उल्टी होकर विष की तीव्रता व वेग एकदम कम होता है।  इसके बाद नीम की अंतर् छाल के क्वाथ में 2.5 ग्राम अंकोल की जड़ का चूर्ण मिलाकर पिलायें।

विशेष :- इसका अधिक मात्रा में प्रयोग हानिकारक है।

 

 

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