स्वामी करपात्री जी जीवनी चरित्र चित्रण -Karpatri Swami Biography Info-Hindi
धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज का संघर्षमयी जीवन
परिचय- धर्मसम्राट, प्रकाण्ड विद्वान्, गोवंश रक्षक स्वामी करपात्री जी महाराज का जन्म 1907 में प्रतापगढ़ जिले के लालगंज तहसील मुख्यालय से 18 किमी. की दुरी पर भटनी गांव में रामनिधि ओझा के घर उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनके माता का नाम शिवरानी देवी था। स्वामी जी के बचपन का नाम हरिनारायण ओझा था। स्वामी जी को 8,9 वर्ष की आयु में ही सत्य का ज्ञान हो गया, स्वामी जी का विवाह 16 वर्ष की आयु में महादेवी के साथ हुआ था। विवाह के कुछ समय बाद उनके घर एक पुत्री का जन्म हुआ। स्वामी करपात्री महाराज जी का मन घर में नहीं लग रहा था, तथा एक रात स्वामी जी अपनी पत्नी और पुत्री को छोड़कर ज्ञान के लिए निकल पड़े। स्वामी करपात्री जी महाराज की जीवनी, जाति, धर्म, चरित्र चित्रण एवं स्वामी करपात्री जी जीवनी चरित्र चित्रण -Karpatri Swami Biography Info-Hindi निम्नलिखित प्रकार से है:-
करपात्री स्वामी जी का व्यक्तिगत जीवन
वास्तविक नाम : स्वामी करपात्री जी महाराज
उपनाम : हरिनारायण ओझा
जन्म : संवत 1964 विक्रमी 1907 ई. में श्रावण मास, शुक्ल पक्ष, द्वितीया में हुआ था।
स्थान : ग्राम भटनी तहसील लालगंज जिला प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
माता का नाम : शिवरानी देवी
पिता का नाम : रामनिधि ओझा
राष्ट्रीयता : भारतीय
पत्नी : महादेवी
पुत्री : ज्ञात नहीं
गुरु : स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती महाराज जी
निधन : 7 फरवरी 1982 में काशी केदार घाट वाराणसी उत्तर प्रदेश
शिक्षा : व्याकरण, दर्शन शास्त्र, भागवत, न्यायशास्त्र, वेदांत का शिक्षा प्राप्त किया
रचनाएं : भागवत सुधा, रस मीमांसा, गोपीगीत भक्ति सुधा
ग्रन्थ : वेदार्थ पारिजात, रामायण मीमांसा, विचार पीयूष, मार्क्सवाद और रामराज्य आदि हैं।
स्वामी करपात्री जी महाराज की प्रारंभिक शैक्षिक योग्यता
नैष्ठिक ब्रम्हचर्य पंडित जीवन दत्त महाराज जी से संस्कृत का अध्ययन ग्रहण किया। स्वामी षड्दर्शनाचार्य पंडित महाराज स्वामी विश्वेश्वराश्रम जी महाराज से व्याकरण, दर्शन शास्त्र, भागवत, न्यायशास्त्र, वेदांत का शिक्षा प्राप्त किया, श्री अचुत्मुनी जी महाराज से अध्ययन प्राप्त किया।
ज्ञान की खोज एवं विस्तार
स्वामी जी महाराज ने सत्य की जय हो अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सदभावना हो, विश्व का कल्याण हो, जैसे ज्ञान को लोगों तक पहुंचाया उन्होंने देश और विदेश सभी जगहों पर ज्ञान का प्रचार और प्रसार किया। स्वामी करपात्री जी महाराज दिन में केवल एक बार ही एक हाथ में भोजन लेकर करते थे। कर अर्थात हाथ में भोजन करने के कारण ही इनका नाम स्वामी करपात्री जी महाराज पड़ा।
करपात्री महाराज का दण्ड ग्रहण संघर्ष
धर्मसम्राट स्वामी करपात्री महाराज ने 24 साल की उम्र में परम तपस्वी 1008 श्री स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती जी महाराज से विधिवत दण्ड ग्रहण कर “अभिनवशंकर” के रूप में सम्पन हुआ। एक सुसज्जित आश्रम की संरचना कर पूर्ण रूप से संन्यासी बन कर “परमहंस परिब्राजका चार्य 1008 बाबा हरिहरानंद सरस्वती श्री करपात्री जी महाराज” कहलाए। तथा सारे मुश्किलों का सामना करते हुए अपने आदर्श पूर्ण विचार को हिंदी संस्कृत भाषा में प्रकट किया।
स्वामी करपात्री महाराज की रचनाएं एवं ग्रन्थ
स्वामी करपात्री महाराज जी ने 2400 हजार श्लोकों वाली रामायण मीमांसा नामक पुस्तक की रचना की जिसमें 1100 पृष्ठ हैं। इसके अतरिक्त भागवत सुधा, रस मीमांसा, गोपीगीत भक्ति सुधा आदि पुस्तकों की रचना की। स्वामी जी के ग्रन्थ- वेदार्थ पारिजात, रामायण मीमांसा, विचार पीयूष, मार्क्सवाद और रामराज्य आदि हैं।
स्वामी करपात्री महाराज गौ रक्षा के प्रबल समर्थक
गौहत्या बंद करने के प्रबल समर्थक स्वामी करपात्री जी महाराज ने इंदिरा गाँधी को श्राप दिया था। जो सच हो गया। शास्त्री जी की मृत्यु के बाद शास्त्री जी के स्थान पर इंदिरा गाँधी ने चुनाव लड़ी उनका चुनाव में जितना मुश्किल लग रहा था। लेकिन स्वामी जी के आशीवार्द से इंदिरा जी वह चुनाव जीत गयी स्वामी करपात्री महाराज ने उनसे कहा था कि आप चुनाव जितने के बाद गो हत्या बंद करावा देना लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया प्रतिदिन हजारों गाय कट रही थी।
1966 में इंदिरा गाँधी ने संतों के ऊपर गोलियां चलवादी जिसमें 250 संत मारे गये। यह गो अष्टमी का दिन था। जो गो पूजा का सबसे बड़ा दिन होता हैं। इस घटना से दुखी होकर स्वामी करपात्री जी महाराज ने इंदिरा गाँधी को श्राप दे दिया, ” जिस प्रकार आप ने गोलियां चलाकर इन संतों की हत्या की है, उसी प्रकार आप की भी हत्या होगी”, जो बात आगे चलकर सही साबित हुई।
धर्मसम्राट स्वामी करपात्री महाराज का निधन
स्वामी करपात्री जी महाराज की मृत्यु 7 फरवरी 1982 में काशी नगरी उत्तर प्रदेश में केदार घाट, वाराणसी में स्वेच्छा से उनके पंच तंत्र को त्याग कर महाप्राण में विलीन हो गए। उनके आदेशानुसार नश्वर काया शरीर को केदार घाट स्थित श्री गंगा महारानी की पवित्र गोद में समर्पित किया गया।
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