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तुलसीदास की जीवनी

रामचरितमानस जैसे महाकाव्य के रचयिता महाकवि गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय:-

महाकवि गोस्वामी तुलसीदास के जन्म के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं, कुछ लोगों ने इनका जन्म स्थान सूकर क्षेत्र (गोंडा जिले) में मानते हैं, लेकिन प्रचलित रुप से महाकवि तुलसीदास जी का जन्म ‘संवत 1554’ (1532 ई०) की श्रावण शुक्ल पक्ष सप्तमी को चित्रकूट जिले के ‘राजापुर ग्राम’ में माना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी सरयूपारी ब्राम्हण थे। गोस्वामी तुलसीदास जी के पिता का नाम ‘आत्माराम दुबे’ तथा माता का नाम ‘हुलसी देवी’ था। इनका बचपन का नाम रामबोला था। इनके जन्म के सम्बन्ध में निम्न दोहा प्रसिद्ध है।

“ पन्द्रह सौ चौवन विसे कालिन्दी के तीर |
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धरयो शरीर ||”

जन्म के समय इनके मुह में पुरे दांत थे, अंत: अशुभ मानकर माता-पिता द्वारा त्याग दिये जाने के कारण इनका पालन-पोषण एक चुनियाँ नाम की दासी ने किया तथा संत नरहरिदास ने काशी में ज्ञान एंव भक्ति की शिक्षा दिए। जन्म लेते हैं इनके मुख में ‘राम’ का शब्द निकला था इसलिए लोग इन्हें ‘रामबोला’ कहने लगे। वे ब्राह्मण कुलोत्पन्न थे। इनका विवाह दीनबंधु पाठक की कन्या रत्नावली से हुआ था। वे पत्नी के प्रेम में बहुत अनुरक्त पर रहते थे। एक बार पत्नी द्वारा बिना बताये मायके चले जाने पर तुलसीदास जी अर्ध रात्रि में आंधी-तूफान का सामना करते हुए अपनी ससुराल जा पहुंचे, इन्हें वहाँ देकर पत्नी ने इन्हें बहुत गुस्सा किया और कहा।

‘लाज न आयी आपको, दौरे आयो साथ’

अस्थि चर्ममय देह मम तमो ऐसी प्रीत।

तैसी जो श्रीराममय होत न तव भवभीत।।

पत्नी के उपदेश से ही इनके मन में वैराग्य उत्पन हुआ। ऐसा कहा जाता है की रत्नावली के प्रेरणा से घर से विरक्त होकर तीर्थाटन के लिए निकल पडे और तन – मन से भगवान राम की भक्ति में लीन हो गए।

संवत्‌ 1607 की मौनी अमावस्या को बुधवार के दिन उनके सामने भगवान श्रीराम पुनः प्रकट हुए। उन्होंने बालक रूप में आकर तुलसीदास से कहा-“बाबा! हमें चन्दन चाहिये क्या आप हमें चन्दन दे सकते हैं, हनुमान ‌जी ने सोचा, कहीं वे इस बार भी धोखा न खा जायें, इसलिये उन्होंने तोते का रूप धारण करके यह दोहा कहा-

चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।

तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

महाकवि गोस्वामी तुलसीदास श्रीराम जी की उस अद्भुत छवि को निहार कर अपने शरीर की सुध-बुध ही भूल गये। अन्ततोगत्वा भगवान ने स्वयं अपने हाथ से चन्दन लेकर अपने तथा तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अन्तर्ध्यान हो गये।

नाम: महाकवि गोस्वामी  तुलसीदास जी
जन्म: संवत 1554 (1532 ई०)
जन्म स्थान: राजापुर, चित्रकूट (उत्तर प्रदेश)
बचपन का नाम: तुलाराम (रामबोला)
माता तथा पिता: हुलसी तथा आत्माराम दुबे
गुरु:  श्री नरहरिदास
प्रेमिका:  रत्नावली
भाषा:  ब्रज तथा अवधी भाषा

महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी साधारणतः गोस्वामी तुलसीदास के नाम से भी जाने जाते है। वे एक हिन्दू कवि-संत, संशोधक और जगद्गुरु रामानंदाचार्य के कुल के रामानंदी सम्प्रदाय के दर्शनशास्त्री और भगवान श्री राम के भक्त थे।

महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी अपने प्रसिद्ध दोहों और कविताओ के लिये जाने जाते है और साथ ही अपने द्वारा लिखित महाकाव्य रामचरितमानस के लिये वे पुरे भारत में लोकप्रिय है। रामचरितमानस संस्कृत में रचित रामायण में राम के जीवन की देशी भाषा अवधि में की गयी है।

महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी रचनाएँ: –

1.रामचरितमानस                 2.कवितावली

3.दोहावली                            4.विनय पत्रिका

5.रामलला नहछू                   6.जानकी-मंगल

7.रामज्ञा                               8. वैराग्य-संदीपनी

9.पार्वती-मंगल                    10. कृष्ण-गीतावली

11.बरवै रामायण                  12.गीतावली

रामचरितमानस, महाकाव्य की रचना:-

महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने वर्ष 1631 में चैत्र मास के रामनवमी पर अयोध्या में रामचरितमानस को लिखना शुरु किया था। रामचरितमानस को महाकवि गोस्वामी तुलसीदास ने मार्गशीर्ष महीने के विवाह पंचमी (राम-सीता का विवाह) पर वर्ष 1633 में 2 साल, 7 महीने, और 26 दिन का समय लेकर पूरा किया।

इसको पूरा करने के बाद महाकवि गोस्वामी तुलसीदास वाराणसी आये और काशी के विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती को महाकाव्य रामचरितमानस सुनाया।

उनके जीवन का एक छोटा सा सुन्दर प्रेरक प्रसंग है –

महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी जब “रामचरितमानस” लिख रहे थे, तो उन्होंने एक चौपाई लिखी –

सिय राम मय सब जग जानी ,
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ।।

भाषा:  ब्रज तथा अवधी भाषा

  1. अवधी  – रामचरितमानस, रामलाल नहछू, बरवाई रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल और रामाज्ञा प्रश्न।
  2. ब्रज  – कृष्णा गीतावली, गीतावली, साहित्य रत्न, दोहावली, वैराग्य संदीपनी और विनय पत्रिका।

मृत्यु – ऐसे महान कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने संवत्‌ 1680 (1623 ई।) में श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन ‘राम-राम’ का जप करते हुए काशी में अपना शरीर त्याग कर दिया।

संवत शोला सौ असी असी गंग के तीर,

श्रावण शुक्ला सप्तमी तुलसी तज्यों शरीर ।।

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